
बैंक और उसके ग्राहकों के बीच रिश्तों को लेकर बहुत-से मुकदमों में बहस हुई है और यह तथ्य स्वीकार किया गया है कि बैंक अपने ग्राहकों से केवल धन का लेन-देन ही नहीं करता है वरन् ग्राहकों के धन का न्यासी होता है और उसकी ओर से अभिकर्ता का कार्य करने के अलावा परामर्शदाता, मित्र और नियामक की भूमिका भी अदा करता है। हाल ही में रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश देते हुए एक अभियान चलाया है- 'अपने ग्राहक को जानिए' या 'नो योअर कस्टमर'। इसके अनुसार बैंक को अपने ग्राहक की पूरी प्रामाणिक जानकारी होनी चाहिए। बैंक अपने ग्राहक को पूरी तरह पहचानने और उसकी समग्र गतिविधियों की देखरेख करने में सक्षम होना चाहिए। बैंक का काम केवल रुपया जमा करने या उधार देने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उसे अपने ग्राहक की हर रुपए के लेन-देन की जरूरत पूरी करना चाहिए और आर्थिक संकट हल करने में मदद करनी चाहिए। किसी वक्त जब निजी साहूकार, महाजन, सराफ या चेट्टी बैंकर का काम करते थे, वे अपने ग्राहक के बारे में हर तरह की जानकारी रखते थे और उसके सुख-दुःख में भागीदार होते थे। मगर कंपनियों के रूप में संगठित और दफ्तरों के रूप में संचालित होने के बाद ग्राहकोंकी व्यक्तिगत पहचान को भुलाया जाने लगा और लिखा-पढ़ी के सबूतों पर ही ज्यादा जोर दिया जाने लगा। लेखा-पुस्तकों और दस्तावेजों में दर्ज जानकारी के अलावा बाकी बातों की उपेक्षा होने लगी। राष्ट्रीयकृत और सार्वजनिक बैंकों में काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी तो और भी लापरवाह हो गए। उन्हीं का अनुकरण निजी बैंकों और सहकारी बैंकों में होने लगा। एक ही ग्राहक के उसी बैंक में या अलग-अलग बैंकों में अनेक और तरह-तरह के खाते चलने लग गए। उसके कारोबार का ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल हो गया। चैक-बुक, एटीएम, डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड के प्रयोग ने इसे और जटिल कर दिया। अलग-अलग नाम से एक ही व्यक्ति कई खातों में लेन-देन करने लगा। बैंक वालों का ध्यान खातों की ओर केंद्रित हो गया और वे व्यक्ति को अनदेखा करने लगे। कुछ ग्राहकों ने भी इसका फायदा उठाया और वसूल न हो सकने वाली बकाया बढ़ने लगी। प्रतिक्रिया में समझ में आया कि ग्राहक पर ध्यान देना जरूरी है। ग्राहक पर ध्यान दिया गया तो बकाया वसूल करना आसान हो जाएगा। इसलिए अब हर खातेदार का और खाता संचालित करने वाले की पहचान का पूरा ध्यान रखा जाता है और उसका फोटो, पते का प्रमाण-पत्र व अन्य कई तरह के साक्ष्य लेकर ही बैंक खाता खोलता है। स्थायी आयकर लेखा क्रमांक भी माँगा जाता है। यह बात अलग है कि बैंकों में प्रतियोगिता चल रही है और एक ही फोटो अनेक बैंकों के खातों में चिपका हो सकता है। मगर धीरे-धीरे प्रत्येक बैंक चाहेगा कि ग्राहक के सारे कामकाज उसी के मार्फत हों। इन दिनों बैंक चाह रहे हैं कि हर व्यक्ति का किसी न किसी बैंक में एक खाता हो और उसेअपनी बचत बैंक में जमा करने की आदत हो। बैंक शून्य जमा पर भी खाता खोलने को तैयार है। अवयस्क बच्चों और विद्यार्थियों के भी खाते खोले जा रहे हैं। वस्तुओं की खरीदी और शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन आदि के लिए ऋण देकर भी खाते खोले जा रहे हैं। कुल मिलाकर हरव्यक्ति के नाम पर बैंक खाता होगा तो करों की चोरी भी रुकेगी और धन की कमी के कारण किसी का काम नहीं रुकेगा। मगर ग्राहक के लिए भी जरूरी है कि वह अपनी बैंक को जानें। उपभोक्ता की हैसियत से यह जरूरी है कि आप अपनी बैंक को पहचानें और ऐसी ही बैंक से रिश्ता बनाएँ जिससे आप आजीवन रिश्ता बनाए रख सकें और जो आपकी हर वित्तीय आवश्यकता को पूरा कर सके। इन दिनों तरह-तरह के बैंक स्वयं या अपने अभिकर्ताओं के जरिए तरह-तरह के प्रचार और प्रलोभन के माध्यम से आपको आमंत्रित कर रहे हैं। किस्तों में सामान खरीदने, मकान के लिए ऋण देने तथा बचत या निवेश की योजनाओं में धन लगाने के लिए जोर-शोर से दबाव डाल रहे हैं। बैंकों में यह स्पर्धा अपनी जगह ठीक है। मगर अनेक छोटे-छोटे तथाकथित बैंक और सहकारी संस्थाएँ भी बाजार में काम कर रही हैं। इनमें से कई कारोबार बढ़ाने के लालच में जमाकर्ताओं और निवेशकों का धन ऐसी जगह खपा रही हैं जहाँ से वसूल होना मुश्किल है। वे बैंककानूनों और रिजर्व बैंक के निर्देशों की अवहेलना करते हैं। उनके संचालक व अधिकारी मनमानी कार्रवाई कर रहे हैं। नौबत परिसमापन या दिवालिया घोषित होने तक आ जाती है। राजनीतिक रसूखों के कारण संचालकों व प्रवर्तकों का तो कुछ बिगड़ता नहीं, जमाकर्ताओं का खून-पसीने से कमाया और बचाया धन डूब जाता है। इसलिए जब आप किसी बैंक से लेन-देन करें तो बैंक और उसके प्रबंधकों को भी वैसे ही जानें, जैसे वे ग्राहकों को जानना चाहते हैं।
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