Wednesday, April 18, 2007


लवली सिंह द्वारा निदेर्शित फिल्म 'क्या लव स्टोरी है' तीन नौजवाँ दिलों की दास्तान हैं। अर्जुन (तुषार कपूर) को पहली ही नजर में काजल (आयशा टाकिया) से प्यार हो जाता है। अर्जन बहुत दिनों तक काजल का पीछा करता रहता है। और तब कहीं जाकर वह सफल हो पाता है। काजल के लिए अर्जुन एक शांत और अच्छे स्वभाव का लड़का है। वह अपने दिल का हाल कागज पर लिखता है, लेकिन अपने दिल की बात काजल पर जाहिर करने में उसे झिझक महसूस होती है। माँ के मरने के बाद काजल काफी अकेली हो गई थी। उसके पिता का भी बिजनेस के सिलसिले में हमेशा बाहर आना-जाना लगा रहता था। एक बार काजल के हाथ अर्जुन की लिखी चिट्ठी लग जाती है लेकिन उस पर अुर्जन का नाम नहीं लिखा रहता। काजल को वह चिट्ठी बहुत अच्छी लगती है। तब अर्जुन उसके दिल का हाल जानने के लिए पूछता है कि अगर कोई लड़का उसे प्यार करे तो उसका जवाब क्या होगा?काजल का जवाब सुनकर अर्जुन को यह महसूस होता है कि उसने काजल से पूछकर गलती कर दी है। और वह काजल को बिना बताए उससे दूर चला जाता है। फिल्म के मध्य भाग में काजल की मुलाकात एक सफल और प्रसिद्ध बिजनेसमैन से होती है। उससे मिलने के बाद काजल को यह महसूस होता है कि वह उसके लिए एक बेहतर जीवनसाथी साबित हो सकता है। काजल उससे बहुत प्रभावित हो जाती और दिन-रात उसी के ख्यालों में डूबी रहती है। दूसरी तरफ ऐसी स्थिति बनती है कि वह भी दक्षिण अफ्रीका पहुँच जाता है, जहाँ वह देखता है कि काजल की मंगनी उस बिजनेसमैन के साथ हो रही है। तीनों की अपनी-अपनी मंजिल है और इस दोराहे पर खड़े होकर कौन अपनी मंजिल पर पहुँच पाता है, यह अभी बताना मुश्किल है। यह हास्य से भरपूर प्रेम कहानी है। फिल्म में करीना कपूर मेहमान कलाकर के रूप में नजर आएँगी। साथ ही फिल्म में दक्षिण अफ्रीका के कई खूबसूरत दृश्यों को फिल्माया गया है।




करीना कपूर को कोई भी नई फिल्म साइन किए एक साल हो गया है और इससे पहले उन्होंने जितनी भी फिल्में साइन की थीं, उनमें से अधिकतर में से वह बाहर कर दी गई हैं। बावजूद इसके, करीना का कहना है कि उनके पास काम की कोई कमी नहीं है। कुछ समय पहले दिए गए अपने एक इंटरव्यू में करीना ने कहा था, 'मैं करीना कपूर हूं और मैं जानती हूं कि अगर मैं एक साल घर बैठ जाऊंगी, तो भी मुझे काम की कोई कमी नहीं होगी। मैं एक ब्रेक चाहती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि मैं बहुत काम कर चुकी हूं।' अब चाहे करीना अपने खयालों की दुनिया में जी रही हों, लेकिन सच यही है कि फिलहाल उनके पास कोई फिल्म नहीं है और उन्हें उनके सभी प्रोजेक्ट्स से अलग कर दिया गया है। पहले रितिक रोशन ने उनके साथ जोया अख्तर की 'किस्मत टॉकीज' में काम करने से मना कर दिया, फिर उन्होंने खुद को 'लव स्टोरी 2050' से अलग कर लिया। दरअसल, करीना राम गोपाल वर्मा की 'टाइम मशीन' में शाहरुख के साथ काम करना चाहती थीं, लेकिन शाहरुख के साथ अनबन के चलते रामू ने इस फिल्म को ही बंद कर दिया। इसके बाद करीना ने करण जौहर से पैचअप किया और दोनों साथ काम करने के लिए तैयार भी हो गए। ऐसे में करीना को तरुण मनसुखानी की फिल्म में अभिषेक बच्चन के अपोजिट साइन किया गया, लेकिन अभिषेक के करीना के साथ काम करने से मना करने के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। दरअसल, अभिषेक करिश्मा से अपना रिश्ता टूटने की बात अभी तक भूले नहीं हैं और वह उस परिवार के किसी सदस्य के साथ काम नहीं करना चाहते। हालांकि इस बात को लेकर करीना करण से काफी नाराज हैं, लेकिन इसे जाहिर नहीं कर रही हैं। फिर उन्होंने श्याम बेनेगल की 'चमकी चमेली' साइन की और बाद में किन्हीं कारणों से उनकी जगह उमिर्ला मातोंडकर फिल्म में आ गईं। इस तरह मणिरत्नम की आमिर और करीना स्टारर 'लज्जो' भी आमिर और मणि के मनमुटाव के चलते बंद हो गई। करीना पिछली बार पर्दे पर फरहान अख्तर की फिल्म 'डॉन' में शाहरुख खान के साथ एक गाने में नजर आई थीं और अब लगभग एक साल बाद वह नए डाइरेक्टर लवली सिंह की फिल्म 'क्या लव स्टोरी है' में दोबारा एक आइटम नंबर में नजर आएंगी। उन्होंने यह सॉन्ग लवली से अपनी दोस्ती के चलते स्वीकारा।



ऐश-अभिषेक शादी समारोह की शुरुआत

ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन के तीन दिवसीय शादी समारोहों की शुरुआत बुधवार से हो गई है. पहले दिन संगीत का कार्यक्रम है.



दोनों की शादी 20 अप्रैल को होने जा रही है. इसके लिए सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं.
इस मौक़े पर महत्वपूर्ण अतिथियों के अलावा भारी संख्या में प्रशंसकों और मीडिया का जमावड़ा हो रहा है.
शादी के दौरान क़रीब तीन से चार सौ लोगों के आने की उम्मीद जताई जा रही है.
हालाँकि बच्चन परिवार का कोई सदस्य या उनके क़रीबी इस बारे में कोई बात करने से बच रहे हैं.
ख़बरों के अनुसार 20 अप्रैल को बारात अमिताभ के नए बंगले जलसा से निकलकर पुराने आवास प्रतीक्षा जाएगी.
शादी के दौरान किसी भी तरह की असुविधा न हो इसलिए मुंबई पुलिस की भी मदद ली जाएगी.
ऐसा माना जा रहा है कि पुलिस के लगभग 500 जवान जलसा और प्रतीक्षा के बीच तैनात किए जाएँगे.
अभिषेक और ऐश्वर्या राय की इस शादी की जोर-शोर से चर्चा होने से काफ़ी प्रशंसकों के इकट्ठा होने की उम्मीद है.
साथ ही कई नामी-गिरामी हस्तियों जिनमें अमरसिंह, मुलायम सिंह, बाल ठाकरे के अलावा बॉलीवुड के कई स्टार भी शादी में शामिल होंगे.
ऐसे में प्रशंसकों और भीड़ के बीच अपने चहेते सितारों की एक झलक पाने को लेकर अफ़रातफ़री मच सकती है, जिससे बचने के लिए पूरे इंतज़ाम किए जा रहे हैं.

Sunday, April 15, 2007

संता सिंह बंता सिंह-1


बंता (संता से)- ऐसा लगता है कि वो लड़की ऊंचा सुनती है। मैं कुछ कहता हूं वो कुछ और ही बोलती है।
संता (बंता से)- वो कैसे?
बंता- मैने कहा आई लव यू, तो वह बोली मैंने कल ही नए सैंडल खरीदे हैं।





संता (बंता से)- शादी क्या है?
बंता (संता से)- शादी चुइंगम है, जो शुरू-शुरू में मीठी लगती है फिर कितना भी चबाइए, बेस्वाद ही लगेगी।





संता (बंता से)- मुझे रात भर नींद नहीं आई।
बंता (संता से)- क्यों नहीं आई?
संता- क्योंकि कल रात भर नींद में मैं यही सपना देखता रहा कि मैं जाग रहा हूं।





संता (बंता से)- मैं अपना पर्स घर भूल आया मुझे 1000 रूपए की जरूरत है।
बंता (संता से)- दोस्त ही दोस्त के काम आता है ले 10 रूपए रिक्शा कर के पर्स ले आ।





जब टाइटेनिक डूब रहा था और सब भाग रहे थे, तब संता ने एक अमेरिकन से पूछा- यहां से जमीन कितनी दूर है?
अमेरिकन (संता से)- करीब दो मील दूर।
संता (अमेरिकन से)- अरे वाह! मैं तो बहुत अच्छा तैराक हूं। और वह कूद गया।
संता (कूदने के बाद)- जमीन किस ओर है?
अमेरिकन- नीचे की ओर।



बंता आधी रात को शराब के नशे में जा रहा था। उसका एक पैर फुटपाथ पर पड़ता और दूसरा सड़क पर। पीछे से थानेदार संता ने उसे एक डंडा जमाते हुए पूछा- क्यों रे, कितनी पी रखी है तूने?
बंता ने संभलते हुए कहा- याद दिलाने के लिए शुक्रिया कि मैंने पी रखी है। एक घंटे से तो मैं यही सोचकर परेशान था कि मैं अचानक लंगड़ा कैसे हो गया।





संता (बंता से)- यदि मैं घर की चौथी मंजिल से कूदकर बच जाऊं, तो इसे तुम क्या कहोगे?
बंता (संता से)- महज संयोग।
संता- यदि दोबारा मैं ऐसा करके बच जाऊं तो?
बंता- विशेष संयोग।
संता-मान लो, तीसरी बार भी मैं ऐसा करने में सफल रहा तो?
बंता- तब मुझे पूरा यकीन हो जाएगा कि तुम पहले कभी सर्कस में काम करते होगे।





संता अपने मित्र बंता से बहुत नाराज था। उसने बंता से कहा- तुम दूसरों से यह क्यों क हते फिरते हो कि मैं मूर्ख हूं?
बंता ने जवाब दिया- माफ करना यार, मुझे यह नहीं मालूम था कि यह बात गुप्त रखनी है।





संता (बंता से)- कल मेरा बेटा आ रहा है।
बंता (संता से)- लेकिन उसे तो पांच साल की सजा हुई थी।
संता- हां, लेकिन उसके अच्छे व्यवहार के कारण उसकी सजा का एक साल माफ कर दिया गया है।
बंता- बहुत अच्छा! भगवान ऐसी औलाद सबको दे।





संता एक दिन तालाब के किनारे घूम रहा था। वहां उसने एक मेढ़क देखा। संता ने मेढ़क से पूछा- क्या सरदार पागल होते हैं?
मेढ़क उसकी आवाज सुनकर पानी में कूद गया।
संता बोला- अरे यार इसमें सुसाइड करने वाली कौन सी बात थी।


संता सिंह ने अपनी रेलयात्रा के दौरान अपना देशी घी का बड़ा सा डिब्बा अनजाने में ट्रेन रोकने वाली जंजीर पर टांग दिया।
ट्रेन रुकी तो गार्ड खिंची हुई जंजीर तलाश करता हुआ डिब्बे में पहुंचा। उसने जंजीर पर डिब्बा टंगा देखा तो गुस्से से बोला- यह डिब्बा किसका है?
संता बोले- मेरा है।
गार्ड- जानते हो इसकी वजह से ट्रेन रुक गई है।
संता (खुश होकर)- भई वाह! देशी घी की असल ताकत का आज पता चला।





संता (बंता से)- तुमने अपनी ज्वेलरी शॉप को वातानुकूलित क्यों बनाया है?
बंता (संता से)- वह इसलिए कि गहनों का दाम सुनकर ग्राहकों को पसीना न आए।





संता सिंह एक बार ट्रक लेकर कही जा रहे थे। रास्ते में उनका ट्रक खराब हो गया। संता ने ट्रक ले जाने के लिए एक दूसरे ट्रक की व्यवस्था की और अपने ट्रक को खींचकर गैराज ले जाने लगे।
रास्ते में एक ढाबे पर बंता सिंह दिखाई दिए। बंता, संता सिंह को ट्रक ले आते देख जोर-जोर से हंसने लगा।
संता ने गुस्से में पूछा- क्या तूने कभी ट्रक नहीं देखा।
बंता ने हंसते हुए जवाब दिया- ओए नहीं यार! ट्रक तो देखा है, लेकिन ऐसा पहले बार देखा है कि दो ट्रक मिलकर एक रस्सी को ले जा रहे हैं।





संता (बंता से) - यार, विवाह के बाद और विवाह के पहले वाली स्थिति में क्या बदलाव आया है?
बंता (संता से)- भाई पहले मैं ऑफिस से लौटते ही प्रेमिका के घर के चक्कर लगाया करता था। लेकिन अब मुझे घर पहुंचते ही चक्कर आने लगता है।





संता (थाना प्रभारी से)- मुझे जल्दी गिरफ्तार कर लीजिए, मैंने अपनी पत्‍‌नी को लाठी से मारा है।
थाना प्रभारी (संता से)- क्या वह मर गई?
संता- नहीं साहब, वह लाठी लेकर मेरे पीछे आ रही है।

संता एक बार में बैठा रो रहा था।
बंता ने पूछा- यार संता तुम क्यों रो रहे हो?
संता- यार एक लड़की को भूलने की कोशिश कर रहा हूं।
बंता- इसमें रोने की क्या बात है?
संता- जिस लड़की को भूलने की कोशिश कर रहा हूं, उसका नाम याद नहीं आ रहा।





संता (बंता से)- यार बंता, पता है कल मिसेज शर्मा की जुबान अचानक बंद हो गई।
बंता (संता से)- अच्छा! मैं अभी अपनी पत्नी को उन्हें देखने के लिए भेजता हूं।
संता- क्या तुम्हारी पत्नी उनकी सहेली है?
बंता- ओए नहीं यार, लेकिन मैं सोचता हूं कि अगर यह छूत की बीमारी निकली तो मेरी आजादी तो नजदीक है।





संता-बंता एक कार में बम लगा रहे थे।
संता (बंता से)- अगर बम लगाते समय यह ब्लास्ट कर गया तो?
बंता (संता से)- अरे तो क्या हुआ मेरा पास एक और बम है।





संता सिंह की नई नौकरी लगी। पहले दिन संता ने बहुत देर तक काम किया। संता का बॉस उससे बड़ा खुश हुआ।
अगले दिन बॉस ने संता को अपने केबिन में बुलाकर पूछा- कल तुमने देर रात तक क्या किया?
संता- कुछ नहीं सर दरअसल, कीबोर्ड में एल्फाबेट्स क्रम में नहीं थे, उन्हीं को ठीक कर रहा था।





अमेरिकी (संता से)- हमारे यहां नब्बे प्रतिशत शादियां ईमेल से होती है।
संता (अमेरिकी से)- क्या बात कर रहे हो! हमारे यहां तो सौ फीसदी शादियां फीमेल से ही होती हैं।



बंता (दुकानदार से)- तुमने मुझे धोखा दिया।
दुकानदार (बंता से)- वो कैसे?
बंता- तुमने कहा था यह रेडियो अमेरिका का बना है, मगर जब मैंने इसे चलाया तब इसमें से आवाज आई कि यह है ऑल इंडिया रेडियो।





संता (बंता से)- भाई संता, तुम इतने दिन से नजर नहीं आ रहे थे, कहीं बाहर गए थे।
बंता (संता से)- हां, मैं श्रमदान करने गया था।
संता- मैं समझा नहीं।
बंता- दरअसल, मुझे छह महीने का सश्रम कारावास मिला था।





संता (बंता से)-यार, होटल का बिल तू दे दे। मैं अपना पर्स घर पर भूल आया हूं।
बंता (संता से)- तो क्या हुआ? एक दोस्त ही दूसरे दोस्त के काम आता है। यह लो पचास रुपए।
संता- पर बिल तो तीन सौ रुपए का है।
बंता- यह बिल के पैसे नहीं है, घर जाने का किराया है। घर जाओ और पर्स लेकर आओ।





संता (बंता से)- बंता भाई, मेरे समझ में नहीं आता कि ड्रिंकिंग और ड्राइविंग साथ-साथ क्यों नहीं कर सकते हैं?
बंता (संता से)- क्योंकि स्पीड ब्रेकर आने पर गिलास गिर सकता है।





संता (प्रेमिका से)- जानती हो जितनी देर मैं एक सांस लेता हूं, उतनी देर में देश में एक नया बच्चा जन्म लेता है।
प्रेमिका (संता से)- हाय राम! तब तुम अपनी गंदी आदत छोड़ क्यों नहीं देते। देश की आबादी पहले से ही इतनी बढ़ी हुई है।


टिकट चेकर (संता से)- अपना टिकट दिखाओ?
संता (टिकट चेकर से)- यह रहा।
टिकट चेकर- पर यह तो लिफाफे में लगाने वाला टिकट है।
संता-तो क्या हुआ जब यह लिफाफा इस टिकट के सहारे पूरी दुनिया में घूम सकता है, तो क्या मैं इस टिकट से यह शहर नहीं घूम सकता।





संता (बंता से)- यार ये बताओ शादी के बाद जिंदगी में क्या बदलाव आया है?
बंता (संता से)- कुछ नहीं बस शादी के पहले तन्हाई काटने को दौड़ती थी और अब बीवी।





संता (बंता से)- क्या तुम बिना खाना खाए जीवित रह सकते हो?
बंता (संता से)- नहीं।
संता- लेकिन मैं रह सकता हूं।
बंता- कैसे?
संता- नाश्ता करके और कैसे।






संता (बंता से)- अरे यार तुम्हारे दांत कैसे टूट गए?
बंता (संता से)- हंसने के कारण।
संता (बंता से)- मैं समझा नहीं।
बंता (संता से)- कुछ नहीं यार कल मैं एक पहलवान को देखकर हंस रहा था।





संता सिंह बौर बंता सिंह गाना गा रहे थे। जहां संता सिंह खड़े हो कर गाना गा रहा था वहीं बंता सिंह शीर्षासन में गाना गा रहा था।
तभी वहां से एक आदमी गुजरा और उसने संता सिंह से पूछा भई ये सिर के बल खड़ा होकर गाना क्यों गा रहा है।
संता सिंह ने जवाब दिया- अरे बुद्धु इतना भी नहीं समझे ये मैं साइड ए गा रहा हूं और ये साइड बी।


संता (बंता से)- भारतीय और अमेरिकी सभ्यता में अंतर बताओ?
बंता (संता से)- जन्मदिन के अवसर पर जिन शब्दों का प्रयोग भारतीय करते हैं, उन्हीं शब्दों का प्रयोग अमेरिकी विवाह के समय करते हैं।
संता (बंता से)- ऐसे कौन से शब्द हैं?
बंता (संता से)- हमारी दुआ है कि यह दिन बार-बार आए।





संता (बंता से)- यार, परसों तुम घर में शासन कैसे करें नाम की एक किताब लाए थे। क्या उससे तुम्हें कुछ लाभ हुआ?
बंता (संता से)- तुम लाभ की बात करते हो, यहां मैं और मुसीबत में फंस गया हूं।
संता (बंता से)- कैसे?
बंता (संता से): असल में वह किताब मेरी बीवी के हाथ लग गई और आजकल वही उसे पढ़ रही है।





संता (बंता से)- बंता यार तूने तो कहा था कि यहां घुटने-घुटने तक पानी है लेकिन मैं तो डूबने वाला था।
बंता (संता से)- बात यह है कि मैं तो यहां नया आया हूं। मैंने सुबह बत्तखों को इस पानी से गुजरते हुए देखा था। उनके तो घुटने-घुटने तक ही पानी था।






संता (बंता से)- तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण क्या है, पैसा या स्वास्थ्य?
बंता (संता से)- स्वास्थ्य?
संता (बंता से)- फिर तुम मुझसे अपने उधार पैसे वापस लेने की टेंशन मत लो।





संता (बंता से)- मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी अक्लमंद हो, खूबसूरत हो और मीठी जुबान वाली हो।
बंता (संता से)- लेकिन इतनी महंगाई में तुम तीन पत्नियों का खर्च कैसे बर्दाश्त करोगे?



संता (बंता से)- कल रात मेरा पड़ोसी आधी रात को अचानक मेरा दरवाजा पीटने लगा।
बंता (संता से)- तब तो तुम बहुत परेशान हुए होगे?
संता (बंता से)- नहीं, मैं तो पहले की तरह से ही गाना गाता रहा।





संता (बंता से)- कल मेरी लक्की से फिर लड़ाई हो गई। मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ने वाला था। लेकिन किसी वजह से रुक गया।
बंता (संता से)- किस वजह से?
संता (बंता से)- वह मुझे पहले भी 5 बार पीट चुका है।





संता (बंता से)- मेरी पत्नी ने कहा था कि जब आपको छींक आए तो समझना मैंने आपको याद किया है, और तुम मेरे पास चले आना।
बंता (संता से)- तो क्या हुआ? अपनी पत्नी के पास चले जाओ।
संता (बंता से)- लेकिन यार, मेरी पत्नी का तो देहांत हो गया है।





संता (बंता से)- मेरे दादा जी की घड़ी कुएं में गिर गई और जब तीस साल बाद वह घड़ी कुएं से मिली तो वह घड़ी सही समय बता रही थी।
बंता (संता से)- मेरे दादाजी कुएं में गिर गए थे और जब तीस साल के बाद निकाले गए तब भी वह जीवित और बिल्कुल सही सलामत थे।
संता (बंता से)- पर वह कुएं में तीस साल तक कर क्या रहे थे?
बंता (संता से)- तुम्हारे दादाजी की घड़ी में चाभी दे रहे थे।





संता सिंह अपने बेटे को बच्चागाड़ी में घुमा रहा था, जो मिलता वही पूछता- संता सिंह, अपने बेटे को घुमा रहे हो!
इस सवाल से तंग आकर संता सिंह ने एक व्यक्ति को जवाब दिया, जी नहीं, पड़ोसी का बच्चा है।
तभी मैं कहूं कि इसकी शक्ल आपके पड़ोसी से इतनी क्यों मिल रही है। उसने छूटते ही कहा।


पुलिस में नौकरी के लिए संता सिंह इंटरव्यू देने गया।
ऑफिसर (संता से)- अगर बिना लाठी या गोली चलाए तुम्हें भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कहा जाए तो क्या करोगे?
संता (ऑफिसर से)- चंदा मांगना शुरू कर दूंगा।





संता (बंता से)- आजकल दुनिया में कोई आदमी ऐसा नहीं मिलता जो झूठ न बोलता हो।
बंता (संता से)- पर मैं एक लड़के को जानता हूं, वह कभी झूठ नहीं बोलता।
संता (बंता से)- अच्छा, मैं उससे मिलकर कुछ बातें करना चाहता हूं।
बंता (संता से)- ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि वह लड़का गूंगा है।





संता (बंता से)- आज हम अपने नौकर की सिल्वर जुबली मना रहे हैं।
बंता (संता से)- अच्छा! क्या इस नौकर को आपके पास रहते हुए पच्चीस वर्ष हो गए?
संता (बंता से)- नहीं, यह हमारा इस साल का पच्चीसवां नौकर है।





संता (बंता से )- शराब से ज्यादा नुकसान तो पानी ने पहुंचाया है।
बंता (संता से)- नहीं भाई, आप गलत कह रहे हैं।
संता (बंता से )- क्यों, पिछले साल बाढ़ से हजारों लोग मरे नहीं थे?





एक बार संता सिंह की 20 लाख की लाटरी निकली। संता सिंह लाटरी वाले के पास गया। नंबर मिलाने के बाद लाटरी वाले ने कहा- ठीक है सर, हम आपको अभी 1 लाख रूपए देंगे और बाकी के 19 लाख आप अगले 19 हफ्तों तक ले सकते हैं।
संता - नहीं, मुझे तो पूरे पैसे अभी चाहिए नहीं तो आप मेरे 5 रूपए वापस कर दीजिए।


संता और बंता में शर्त लगी कि एक दुर्गधयुक्त कमरे, जिसमें एक बकरा बंधा था, में कौन कितनी देर रहता है।
पहले संता आया और पांच घंटे बाद बाहर आया, फिर बंता गया तो बकरा रस्सी तोड़कर बाहर आ गया।





संता (बंता से)- पता ही नहीं चला कि तुम्हारे साथ बात करते-करते एक घंटा कब बीत गया।
बंता (संता से)- एक घंटा कहां जनाब? पूरे 3 घंटे 12 मिनट 35 सेकेंड हो चुके हैं।





संता-बंता आपस में बातें कर रहे थे।
संता (बंता से)- मेरी पत्नी दूसरी मंजिल से गिर गई।
बंता (संता से)- क्या वह मर गई?
संता (बंता से)-नहीं यार, यह तो अच्छा हुआ कि वह बाल-बाल बच गई।
बंता (संता से)- अरे यार, तुम केवल बालों का क्या करोगे।





संता और बंता पेड़ पर बैठे हुए थे। संता गाना गा रहा था। चार गाने गाने के बाद वह पेड़ पर उल्टा लटक कर गाना गाने लगा।
इस पर बंता ने पूछा- क्या बात है, तुम उल्टे क्यों लटक गए?
संता सिंह ने जवाब दिया- अब मैं बी साइड के गाने गा रहा हूं।





संता (दुकानदार से)- कोई बढि़या कपड़ा दिखाइए।
दुकानदार (संता से)- प्लेन में दिखाऊं?
संता (दुकानदार से)- प्लेन में जाने की क्या जरूरत है, यहीं दिखाओ।



संता (बंता से)- क्या तुम्हारा कभी मूर्खो से पाला पड़ा है?
बंता (संता से)- मैने बहुत कोशिश की कि पाला न पड़े, पर आज मैं तुमसे बच नहीं सका।





संता कवि (बंता से)- मेरी कविताओं का स्तर कैसा है?
बंता (संता कवि से)- बीरबल की तरह।
संता कवि (बंता से)- पर बीरबल तो कविताएं लिखना जानते नहीं थे।
बंता (संता कवि से)- तो आप कहां जानते हैं।





बंता सिंह के पिता की मौत हो गई। संता सिंह उनके अंतिम समय की कुछ तस्वीरें खींचने के लिए वहां गया।
अचानक बंता सिंह ने संता सिंह को जोरदार तमाचा मारा।
लोगों ने पूछा- क्या बात है भई बंता तुमने संता को इतनी तेज क्यों मारा?
बंता बोला- मारूं नहीं तो क्या करूं, खोता बापू की फोटो खींचते वक्त उनसे कह रहा था स्माइल प्लीज!





संता (बंता से)- मुझे अपनी गर्लफ्रेंड को कोई गिफ्ट देना है, क्या दूं?
बंता (संता से)- यार ऐसा कर की गोल्ड रिंग दे दे।
संता (बंता से)- कोई बड़ी चीज बता।
बंता (संता से)- तो फिर गोल्ड रिंग जाने दे, एम.आर.एफ. का टायर दे दे।





संता (बंता से)- तुम तारे गिन सकते हो?
बंता (संता से)- हां, पर रात में नहीं।
संता (बंता से)- रात में क्यों नहीं?
बंता (संता से)- क्योंकि रात को अंधेरा होता है।



संता (बंता से)- अगर तुम बता दो कि मेरे थैले में कितने अंडे हैं तो आठ तुम्हारे आठ मेरे। और अगर ये भी बता दो कि किस जानवर के हैं तो वह मुर्गी भी तुम्हारी!
बंता (संता से)- यार कोई तो हिंट दे।





संता सिंह को एक हाइवे पर सड़क के बीचोंबीच पीली पट्टी पोतने का काम मिला। पहले दिन संता सिंह ने छह मील सड़क पोत दी, दूसरे दिन तीन मील और तीसरे दिन सिर्फ आधा मील।
ठेकेदार ने संता सिंह से पूछा- तुम्हारा काम कम क्यों होता जा रहा है?
संता- मैं क्या करूं। हर दिन बीतने पर मैं पेंट की बाल्टी से दूर जो होता जा रहा हूं।





संता (बंता से)- यह चाकू क्यों उबाल रहे हो?
बंता (संता से)- आत्महत्या करने के लिए।
संता (बंता से)- तो फिर इसे उबालने की क्या जरूरत है?
बंता (संता से) - जंग लगे चाकू से कहीं इन्फेक्शन हो गया तो?





संता (बंता से)- मरते वक्त इंसान को क्या देना चाहिए?
बंता (संता से)- बिरला सीमेंट।
संता (बंता से)- बिरला सीमेंट! वह क्यों?
बंता (संता से)- क्योंकि इसमें जान है।






संता (बंता से)- तुम्हारे दांत कैसे टूट गए?
बंता (संता से)- हंसने के कारण।
संता (बंता से)- क्या मतलब?
बंता (संता से)- हां यार, कल मैं एक पहलवान को देखकर हंस पड़ा था।



संता (बंता से)- योर बर्थ प्लेस
बंता (संता से)- पंजाब
संता (बंता से)- व्हीच पार्ट
बंता (संता से)- ओए ये पार्ट वार्ट क्या कर रहा है मैंनू ते होल बॉडी बोर्न इन पंजाब।





संता (बंता से)- तुम इतने कमजोर कैसे हो गए!
बंता (संता से)- दवाइयां खा-खाकर।
संता (बंता से)- लेकिन इतनी दवाइयां क्यों खाई?
बंता (संता से)- कमजोरी दूर करने के लिए।





भैंस चोरी हो जाने पर संता ने बंता से कहा कि वह चोरी की रिपोर्ट लिखवा आए।
बंता (संता से)- पर थाने जाकर कहूंगा क्या?
संता (बंता से)- थाने जा कर कहना कि तारे चमक रहे थे, कुत्ते भौंक रहे थे। चोर आया, दीवार फांदी और भैंस चुरा कर ले गया।
थाने पहुंच कर बंता गड़बड़ा गया।
बंता (दरोगा जी से)- कुत्ते चमक रहे थे, तारे भौंक रहे थे। चोर आया, भैंस फांदी और दीवार चुरा कर ले गया।






संता (बंता से)- पहले तो सिर्फ रात को ही मच्छर काटते थे, अब दिन में भी काटने लगे हैं।
बंता (संता से)- दोस्त, महंगाई की मार ऐसी है कि इंसान तो क्या, अब मच्छरों को भी दिन-रात काम करना पड़ रहा है।






संता (बंता से)- बंता तुम्हारे हाथ पर पट्टी कैसे बंधी है?
बंता (संता से)- मोटर एक्सीडेंट हो गया था।
संता (बंता से)- अच्छा इतनी चोट लगी।
बंता (संता से)- नहीं मुझे तो खरोंच भी नहीं लगी परंतु एक राहगीर को धक्का लग गया था।
संता (बंता से)- तो तुम्हारे हाथ पर पट्टियां कैसी हैं?
बंता (संता से)- वह राहगीर कल रास्ते में मुझे मिल गया था।



संता (बंता से)- जल्दी चलो, मेरी बीवी खिड़की से कूद कर जान देने वाली है।
बंता (संता से)- तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं?
संता (बंता से)- अरे यार, वह खिड़की खुल नहीं रही है।





संता (प्रेमिका से)- आज मैं तुम्हें अपने बारे में ऐसी बात बताता हूं, जिसे मैंने अभी तक छिपाकर रखा था।
प्रेमिका (संता से)- क्या बात है!
संता (प्रेमिका से)- मैं शादीशुदा हूं।
प्रेमिका (संता से)- ओह! मैं समझी कि तुम कहोगे कि यह कार तुम्हारी नहीं है।






संता (बंता से)- अरे, मैंने तो लिफाफे पर चिपकाने वाले टिकट खरीदने के लिए तुम्हें पैसे दिए थे, फिर ये पैसे वापस कैसे ले आए?
बंता (संता से)- कोई मुझे देख नहीं रहा था, इसलिए बिना टिकट लगाए ही लिफाफा मैंने लेटर बॉक्स में डाल दिया।






संता (बंता से)- अरे ये सादा पोस्टकार्ड किसने भेजा है?
बंता (संता से)- मेरी पत्नी ने।
संता (बंता से)- लेकिन इस पर कुछ लिखा क्यों नहीं है?
बंता (संता से)- क्योंकि आजकल हमारे बीच बोलचाल बंद है।





संता (बंता से)- यार, परसों तुम घर में शासन कैसे करें नाम की एक किताब लाए थे। क्या उससे तुम्हें कुछ लाभ हुआ?
बंता (संता से)- तुम लाभ की बात करते हो, यहां मै और मुसीबत में फंस गया हूं।
संता (बंता से)- कैसे?
बंता (संता से)- असल में वह किताब मेरी बीवी के हाथ लग गई और आजकल वही उसे पढ़ रही है।



संता (बंता से)- एक बार मैंने एक शेर की टांग तोड़ दी, एक हाथी की सूंड़ तोड़ दी।
बंता (संता से)- फिर क्या हुआ।
संता (बंता से)- होना क्या था, दुकान के मालिक ने मेरे पैर की हड्डी तोड़ दी।





संता ने फोन पर नंबर डायल किया। दूसरी तरफ से एक लड़की ने फोन रिसीव किया।
संता (लड़की से)- हैलो आप कौन बोल रहे हैं?
लड़की (संता से)- जी, मैं सीता बोल रही हूं।
संता (लड़की से)- अरे मैंने तो दिल्ली का नंबर मिलाया था, यह तो अयोध्या मिल गया।






संता (बंता से)- मेरी याददाश्त बहुत अच्छी है, लेकिन सिर्फ तीन चीजें ऐसी हैं जिन्हें मैं कभी याद नहीं रख पाता।
बंता (संता से)- कौन-सी तीन चीजें?
संता (बंता से)- एक तो मुझे नाम याद नहीं रहते, दूसरी मुझे सूरतें याद नहीं रहती और तीसरी मुझे वह तीसरी चीज याद नहीं रहती।





संता (बंता से)- तुम्हारी घड़ी में कितने बजे हैं?
बंता (संता से)- बारह!
संता (बंता से)- क्या आपकी घड़ी रेडियो से मिली हुई है?
बंता (संता से)- नहीं, ससुराल से मिली है।





संता (बंता से)- यार, मैं रोज रात को एक बुरा सपना देखता हूं कि चार सुंदर युवतियों से मेरी शादी हो रही है।
बंता (संता से)- मगर इसे बुरा सपना क्यों कहते हो?
संता (बंता से)- तुमने कभी इतनी औरतों के लिए खाना पकाया होता तो पता चलता।



संता (बंता से)- भाई पार्टी किस खुशी में दे रहे हो?
बंता (संता से)- मेरी बाइक खो गई है इसलिए।
संता (बंता से)- लेकिन यह तो दुख की बात है?
बंता (संता से)- हां, लेकिन खुशी की बात यह है कि मैं उस पर बैठा नहीं था, वरना आज मैं भी खो जाता।






बंता (संता से)- यार तूने अपने फ्रिज में खाली बियर की बोतलें क्यों रखी हैं।
संता (बंता से)- ओए यार ये उनके लिए है जो बीयर नहीं पीते।





संता बंता कहीं जा रहे थे, तभी उन्हें सड़क पर दो ट्रक दिखाई दिए, जो एक रस्सी से बंधे थे।
संता ने बंता से पूछा- यार इन ट्रकों के बीच रस्सी क्यों बंधी है?
बंता ने जवाब दिया- ओए बेवकूफ! इतनी मोटी रस्सी ले जाने के लिए दो ट्रक की तो जरूरत पड़ेगी न।





संता (बंता से)- ऐसा क्यों कहा जाता है कि प्यार दिमाग से नहीं दिल से किया जाता है?
बंता (संता से)- अरे यार, सीधी-सी बात है, जिसके पास दिमाग होगा वह प्यार के लफड़े में पड़ेगा ही क्यों?





संता (बंता से)- तुम सोकर कितने बजे उठते हो?
बंता (संता से)- जब सूरज की किरणें खिड़कियों से होकर मेरे कमरे में आने लगती हैं।
संता (बंता से)- वाह, तुम तो एकदम सुबह उठ जाते हो।
बंता (संता से)- नहीं, दरअसल मेरी खिड़कियां पश्चिम की तरफ खुलती हैं।



संता (प्रेमिका से)- मैं आजकल साहित्य की सेवा में लगा हूं।
प्रेमिका (संता से)- सच! क्या काम कर रहे हो?
संता (प्रेमिका से)- साहित्यकार की पुस्तकों पर जिल्दें चढ़ा रहा हूं।





संता (बंता से)- मेरी याददाश्त बहुत अच्छी है। लेकिन सिर्फ तीन चीजें ऐसी हैं जिन्हें मैं कभी याद नहीं रख पाता।
बंता (संता से)- कौन सी तीन चीजें?
संता (बंता से)- एक तो मुझे नाम याद नहीं रहते, दूसरी मुझे सूरतें याद नहीं रहती और तीसरी मुझे वह तीसरी चीज याद नहीं रहती।





संता (बंता से)- परेशान क्यों हो?
बंता (संता से)- मैं अपनी सास को दफना कर आ रहा हूं।
संता (बंता से)- बड़ा अफसोस हुआ, लेकिन तुम्हारे कपड़े क्यों फटे हैं।
बंता (संता से)- वो मुझसे बहुत देर तक झगड़ती रही। फिर काफी जबर्दस्ती करने के बाद ही दफना पाया।





बंता (संता से)- तुम्हारी बीवी को हरदम किचन में ही काम करते हुए देखता हूं, तुम अपनी बीवी से इतना काम करवाते हो?
संता (बंता से)- यह बात नहीं है। दरअसल हमारे घर में एक ही आइना है और वह किचन में है।





संता (बंता से) मैं और मेरी पत्नी 25 साल से सुखी जीवन जी रहे हैं।
बंता (संता से)- वो कैसे?
संता (बंता से)- मैं और मेरी पत्नी हफ्ते में एक बार किसी होटल में जाते हैं, वहां खूब स्वादिष्ट भोजन करते हैं। यह अलग बात है कि वो सोमवार को होटल जाती है और मैं मंगलवार को।



संता (बंता से)- केले के साथ उसका छिलका भी खाना चाहिए।
बंता (संता से)- क्या इससे हाथ पैर स्वस्थ रहते हैं?
संता (बंता से)- जी हां, लेकिन खाने वालों के नहीं, बल्कि रास्ते चलने वालों के।





संता (बंता से)- दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो अपनी मूर्खता पर भी जश्न मनाते हैं।
बंता (संता से)- कैसे? मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पा रहा हूं।
संता (बंता से)- सीधी सी बात है, लोग पहले तो शादी करते हैं और फिर वर्षगांठ भी मनाते हैं।





संता (बंता से)- यार, जब तक मैं घर नहीं जाता तब तक वह खाना नहीं खाती।
बंता (संता से)- वाह! तुम्हारी पत्नी तो तुम्हें बहुत प्यार करती है।
संता (बंता से)- ऐसी बात नहीं है।
बंता (संता से)- तो फिर क्या है?
संता (बंता से)- दरअसल, घर पहुंचकर खाना मैं ही बनाता हूं





संता-बंता मिस्र घूमने गए। वहां उन्होंने एक ममी देखी।
संता (बंता से) - कितनी पट्टियां बंधी हैं बेचारे के, जरूर ट्रक एक्सीडेंट से मरा होगा।
बंता (संता से)- हां, देखो ट्रक का नंबर भी लिखा है- बी.सी. 1760।





संता (बंता से)- यार बंता तुम्हारा जन्मदिन कब पड़ता है?
बंता (संता से)- 25 जनवरी।
संता (बंता से)- किस साल?
बंता (संता से)- ओए, हर साल।


संता एक अखबार के दफ्तर पहुंचा। वहां जाकर उसने कहा- मैं अपने दोस्त की मौत पर एक शोक संदेश छपवाना चाहता हूं। क्या रेट है?
जवाब मिला- चालीस रुपए प्रति इंच।
संता ने कहा- बाप रे! यह तो मुझे बहुत महंगा पड़ेगा। मेरा दोस्त तो 6 फुट लंबा था।





संता सिंह की बीवी मर गई। बंता सिंह सांत्वना देने गया।
बंता सिंह (संता से)- तुम्हारी बीवी की मौत का बड़ा अफसोस है। वैसे हुआ क्या था?
संता सिंह (रोते हुए)- माथे पर गोली लगी थी।
बंता सिंह (संता से)- चलो आंख तो बच गई।





संता सिंह एक लड़की को छेड़ रहा था।
लड़की ने उसको डांटते हुए कहा - अगर जरा भी शर्म है तो जाकर डूब मरो।
संता सिंह ने जवाब दिया- मैं आपके हुक्म की तामील जरूर करता पर अफसोस है मै ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मुझे तैरना आता है।





संता मुंबई घूमने गया। गेटवे ऑफ इंडिया पर खड़े होकर वह कबूतर देखने लगा। वहां पुलिस की वर्दी में एक ठग ने उसे टोका- क्या तुम्हे पता नहीं है कि यहां कबूतर देखने के भी पैसे लगते हैं। कितने कबूतर देखे?
संता ने जवाब दिया- जी पंद्रह।
ठग संता सिंह से पंद्रह रुपए लेकर चलता बना।
वापस लौट कर संता सिंह ने अपनी पत्नी से कहा- मैंने मुंबई में एक पुलिस वाले को ठग लिया।
पत्नी ने पूछा- कैसे?
संता सिंह ने जवाब दिया- मैंने वहां पच्चीस कबूतर देखे लेकिन रुपए पंद्रह कबूतर के ही दिए।





संता (बंता से)- यार पेट्रोल के दाम फिर बढ़ गए हैं।
बंता (संता से)- क्या फर्क पड़ता है यार मैं तब भी सौ रुपए का पेट्रोल डलवाता था और आज भी उतने का ही डलवाता हूं।


संता (अपनी प्रेमिका से)- अगर तुम्हारे पिता ने हमारी शादी नहीं होने दी तो मैं जहर खा लूंगा और फिर भूत बनकर उनको डराया करूंगा।
प्रेमिका (संता से)- कोई फायदा नहीं मेरे पिता भूत-प्रेतों पर विश्वास नहीं करते।





संता (बंता से)- यार, कल शाम मैं गाड़ी चलाता हुआ जंगल में जा पहुंचा, तभी कुछ लोगों ने मुझे आ घेरा और मेरे सारे रुपए, घड़ी यहां तक कि गाड़ी भी छीन ली।
बंता (संता से)- लेकिन तुम्हारे पास पिस्तौल भी तो थी।
संता (बंता से)- हां यार, मुझे इसी बात की चिंता हो रही थी कि कहीं वे मेरी पिस्तौल न देख लें।





मुकेश की पत्नी उसकी शराब पीने और जुआ खेलने की आदत से काफी परेशान थी। एक रोज दोनों बाजार से गुजर रहे थे कि तभी एक भिखारी उनके पास आया और एक रुपया मांगने लगा।
मुकेश- क्या तुम जुआ खेलते हो, शराब पीते हो?
भिखारी- जी नहीं साहब।
मुकेश- (अपनी पत्नी की ओर देखते हुए)- देखा जो लोग सिगरेट शराब नहीं पीते और जुआ नहीं खेलते हैं उनकी यही हालत होती है।





संता (बेटे से)- इतने कम नंबर! थप्पड़ मारने चाहिए..।
संता का बेटा (संता से)- हां, पापा। चलो मैंने उस मास्टर का घर देखा है।





संता (बंता से)- मेरी पत्नी की याददाश्त बहुत ही खराब है।
बंता (संता से)- क्या सारी बातें भूल जाती है?
संता (बंता से)- नहीं, छोटी-छोटी बात भी याद रखती है।

लाइफ इन ए मेट्रो






लाइफ इन ए मेट्रो : रिश्तों की दास्तां

निर्माता : रोनी स्क्रूवालानिर्देशक : अनुराग बसु संगीत : प्रीतम चक्रवर्तीकथा-पटकथा : अनुराग बसुसंवाद : संजीब दत्ताकलाकार : शाइनी आहूजा, शिल्पा शेट्टी, के के मेनन, कोंकणा सेन शर्मा, इरफान खान, कंगना



‘मर्डर’ और ‘गैंगस्टर’ जैसी फिल्में निर्देशित कर प्रशंसा बटोर चुके अनुराग बसु ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ लेकर हाजिर हो रहे हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है इसकी कहानी मेट्रो शहर में रहने वाले लोगों की है। मेट्रो में रहने वाले तेजी से सफल होना चाहते हैं और इसके लिए वे अपने रिश्ते-परिवार की अवेहलना भी करते हैं। अपने काम में वे इतने व्यस्त रहते हैं कि उनका परिवार बिखरने लगता है। कहानी का लगभग हर पात्र अपने जीवन साथी से नाखुश है और अपने सपने पूरे करने और प्यार पाने के लिए वह अवैध रिश्ते बनाने में हिचकिचाता नहीं है। यह कहानी है राहुल की जो कि जो अपनी बॉस नेहा को चाहता है, लेकिन अपने दिल की बात नहीं कह पाता है। नेहा पर उसका बॉस रंजीत भी मेहरबान है। ऑफिस में नेहा की तरक्की की रफ्तार बहुत ज्यादा है क्योंकि अपने बॉस को खुश रखना उसे आता है और उसके लिए वह सारी सीमाएं लाँघ जाती है। रंजीत की पत्नी शिखा अपने बच्चे की परवरिश के खातिर घर पर ही रहती है। रंजीत नेहा के प्यार में और धन कमाने के चक्कर में अपने परिवार को भूल जाता है। इससे दोनों के संबंधों में दरार आने लगती है। रंजीत से परेशान शिखा अपना प्यार आकाश में खोजती है जो एक तलाकशुदा व्यक्ति है। आकाश एक संघर्षरत कलाकार है और उसकी लगातार असफलताएँ उसकी शादी के टूटने का कारण बनती है। कहानी में श्रुति भी है जो शिखा की बहन और नेहा के साथ रहती है। तीस वर्ष की होने के बावजूद श्रुति अब तक कुँवारी है। वह एक रेडियो स्टेशन पर काम करती है और वहीं पर काम करने वाले एक युवक से प्यार करती है। इधर राहुल किसी भी कीमत पर सफलता पाना चाहता है। उसके अंकल का अपार्टमेंट है जो राहुल के हवाले है, क्योंकि अंकल बहुत दूर रहते है। राहुल के ऑफिस के साथी हमेशा ऐसी जगह की तलाश में रहते हैं जहाँ वे गर्लफ्रेंड या वेश्या के साथ समय व्यतीत कर सकें। राहुल उन्हें अपना अपार्टमेंट मुहैया करवाता है और चाहता है कि वे सब उसके प्रमोशन के लिए सिफारिश करें।आखिर एक दिन नेहा रंजीत पूछती है कि उन दोनों के रिश्ते का भविष्य क्या है? वह रंजीत से वचनबद्धता चाहती है। रंजीत उसे कोई वचन नहीं देना चाहता है। वह नेहा की बेइज्जती करता है और उसे छोड़ देता है। नेहा आत्महत्या का प्रयास करती है लेकिन राहुल उसे बचा लेता है। राहुल नेहा की देखभाल करता है और दोनों प्यार के कुछ लम्हें आपस में बाँटते है, लेकिन नेहा अभी भी राहुल के बारे में कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती है।

बैंक और ग्राहकों के रिश्ते


बैंक और उसके ग्राहकों के बीच रिश्तों को लेकर बहुत-से मुकदमों में बहस हुई है और यह तथ्य स्वीकार किया गया है कि बैंक अपने ग्राहकों से केवल धन का लेन-देन ही नहीं करता है वरन्‌ ग्राहकों के धन का न्यासी होता है और उसकी ओर से अभिकर्ता का कार्य करने के अलावा परामर्शदाता, मित्र और नियामक की भूमिका भी अदा करता है। हाल ही में रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश देते हुए एक अभियान चलाया है- 'अपने ग्राहक को जानिए' या 'नो योअर कस्टमर'। इसके अनुसार बैंक को अपने ग्राहक की पूरी प्रामाणिक जानकारी होनी चाहिए। बैंक अपने ग्राहक को पूरी तरह पहचानने और उसकी समग्र गतिविधियों की देखरेख करने में सक्षम होना चाहिए। बैंक का काम केवल रुपया जमा करने या उधार देने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। उसे अपने ग्राहक की हर रुपए के लेन-देन की जरूरत पूरी करना चाहिए और आर्थिक संकट हल करने में मदद करनी चाहिए। किसी वक्त जब निजी साहूकार, महाजन, सराफ या चेट्टी बैंकर का काम करते थे, वे अपने ग्राहक के बारे में हर तरह की जानकारी रखते थे और उसके सुख-दुःख में भागीदार होते थे। मगर कंपनियों के रूप में संगठित और दफ्तरों के रूप में संचालित होने के बाद ग्राहकोंकी व्यक्तिगत पहचान को भुलाया जाने लगा और लिखा-पढ़ी के सबूतों पर ही ज्यादा जोर दिया जाने लगा। लेखा-पुस्तकों और दस्तावेजों में दर्ज जानकारी के अलावा बाकी बातों की उपेक्षा होने लगी। राष्ट्रीयकृत और सार्वजनिक बैंकों में काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी तो और भी लापरवाह हो गए। उन्हीं का अनुकरण निजी बैंकों और सहकारी बैंकों में होने लगा। एक ही ग्राहक के उसी बैंक में या अलग-अलग बैंकों में अनेक और तरह-तरह के खाते चलने लग गए। उसके कारोबार का ठीक-ठीक अनुमान लगाना मुश्किल हो गया। चैक-बुक, एटीएम, डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड के प्रयोग ने इसे और जटिल कर दिया। अलग-अलग नाम से एक ही व्यक्ति कई खातों में लेन-देन करने लगा। बैंक वालों का ध्यान खातों की ओर केंद्रित हो गया और वे व्यक्ति को अनदेखा करने लगे। कुछ ग्राहकों ने भी इसका फायदा उठाया और वसूल न हो सकने वाली बकाया बढ़ने लगी। प्रतिक्रिया में समझ में आया कि ग्राहक पर ध्यान देना जरूरी है। ग्राहक पर ध्यान दिया गया तो बकाया वसूल करना आसान हो जाएगा। इसलिए अब हर खातेदार का और खाता संचालित करने वाले की पहचान का पूरा ध्यान रखा जाता है और उसका फोटो, पते का प्रमाण-पत्र व अन्य कई तरह के साक्ष्य लेकर ही बैंक खाता खोलता है। स्थायी आयकर लेखा क्रमांक भी माँगा जाता है। यह बात अलग है कि बैंकों में प्रतियोगिता चल रही है और एक ही फोटो अनेक बैंकों के खातों में चिपका हो सकता है। मगर धीरे-धीरे प्रत्येक बैंक चाहेगा कि ग्राहक के सारे कामकाज उसी के मार्फत हों। इन दिनों बैंक चाह रहे हैं कि हर व्यक्ति का किसी न किसी बैंक में एक खाता हो और उसेअपनी बचत बैंक में जमा करने की आदत हो। बैंक शून्य जमा पर भी खाता खोलने को तैयार है। अवयस्क बच्चों और विद्यार्थियों के भी खाते खोले जा रहे हैं। वस्तुओं की खरीदी और शिक्षा, चिकित्सा, पर्यटन आदि के लिए ऋण देकर भी खाते खोले जा रहे हैं। कुल मिलाकर हरव्यक्ति के नाम पर बैंक खाता होगा तो करों की चोरी भी रुकेगी और धन की कमी के कारण किसी का काम नहीं रुकेगा। मगर ग्राहक के लिए भी जरूरी है कि वह अपनी बैंक को जानें। उपभोक्ता की हैसियत से यह जरूरी है कि आप अपनी बैंक को पहचानें और ऐसी ही बैंक से रिश्ता बनाएँ जिससे आप आजीवन रिश्ता बनाए रख सकें और जो आपकी हर वित्तीय आवश्यकता को पूरा कर सके। इन दिनों तरह-तरह के बैंक स्वयं या अपने अभिकर्ताओं के जरिए तरह-तरह के प्रचार और प्रलोभन के माध्यम से आपको आमंत्रित कर रहे हैं। किस्तों में सामान खरीदने, मकान के लिए ऋण देने तथा बचत या निवेश की योजनाओं में धन लगाने के लिए जोर-शोर से दबाव डाल रहे हैं। बैंकों में यह स्पर्धा अपनी जगह ठीक है। मगर अनेक छोटे-छोटे तथाकथित बैंक और सहकारी संस्थाएँ भी बाजार में काम कर रही हैं। इनमें से कई कारोबार बढ़ाने के लालच में जमाकर्ताओं और निवेशकों का धन ऐसी जगह खपा रही हैं जहाँ से वसूल होना मुश्किल है। वे बैंककानूनों और रिजर्व बैंक के निर्देशों की अवहेलना करते हैं। उनके संचालक व अधिकारी मनमानी कार्रवाई कर रहे हैं। नौबत परिसमापन या दिवालिया घोषित होने तक आ जाती है। राजनीतिक रसूखों के कारण संचालकों व प्रवर्तकों का तो कुछ बिगड़ता नहीं, जमाकर्ताओं का खून-पसीने से कमाया और बचाया धन डूब जाता है। इसलिए जब आप किसी बैंक से लेन-देन करें तो बैंक और उसके प्रबंधकों को भी वैसे ही जानें, जैसे वे ग्राहकों को जानना चाहते हैं।

लिट्टी चोखा






चटपटी
लिट्टी
लिट्टी चोखा एक प्रकार का व्यंजन है जो से लिट्टी तथा चोखे - दो अलग व्यंजनों के साथ-साथ खाने को कहते हैं । यह बिहार के विशेष व्यंजनो में से एक है ।

लिट्टी
मैदे को पानी के साथ गूंथा जाता है जिसके बाद उसमें पहले से तैयार सत्तू और मसाले के मिश्रण को बीच में डाल कर गोल बना लिया जाता है । इस पहले से तैयार मिश्रण में, सत्तू को तेल, नींबू के रस, प्याज के कटे टुकड़े, लहसुन इत्यादि के साथ मिला कर थोड़ा रूखा गूंथा जाता है ।
चोखा
आलू या बैंगन(जिसका चोखा बनाना है) को उबाला अथवा आग में पका लिया जाता है । इसके बाद इसके छिलके को हटा कर उसे नमक, तेल, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन इत्यादि के साथ गूंथ लिया जाता है ।


सामग्री
: गेहूँ का आटा 1/2 किलो, सत्तू 250 ग्राम, प्याज 2, लहसुन 8 कली, हरी मिर्च 4, नींबू 2, अमचूर 1/2 चम्मच, नमक स्वादानुसार, तलने के लिए तेल या घी।विधि : प्याज, लहसन और हरी मिर्च को महीन काट लें। सत्तू में कटे प्याज, लहसन, हरी मिर्च, नमक, अमचूर डालकर उसमें नींबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। अब आटे को मुलायम गूँथ लें। गूँथे आटे की लोई बनाकर उसमें तैयार मिश्रण को भर दें। अब इस लोई को रोटी के आकार में बेलें। गैस पर तवा चढ़ाकर उसमें बेली हुई रोटियों को तेल या घी के साथ सेंक लें। तैयार चटपटी लिट्टी को हरी चटनी के साथ गरमा-गरम परोसें।




'खन्ना एण्ड अय्यर'












फिर वही अंदाज- 'खन्ना एण्ड अय्यर'
निर्देशक- हेमंत हेगड़े कलाकार- सरवर आहूजा, अदिति शर्मा, यशपाल शर्मा, अरुण बख्शीसंगीत- तबुन सूत्रधार बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म 'खन्ना एण्ड अय्यर' के जरिए हेमंत हेगड़े दर्शकों का ध्यान तो खींचेंगे, लेकिन बॉक्स-ऑफिस पर फिल्म के चलने की उम्मीद शायद ही की जा सकती है। फिल्म की कहानी : यह आर्यन खन्ना (सरवर आहूजा) और नंदिनी (अदिति शर्मा) की कहानी है, जिनके परिवारों के बीच तनतनी है। खन्ना और अय्यर परिवारों के बीच पिसते दोनों प्रेमी घर से भाग जाते हैं। इनके पीछे डोगा (यशपाल शर्मा) नाम का आतंकवादी और एक नेता (अरुण बख्शी) भी लग जाता है। इस क्रम में काफी ड्रामा होता है और जीत प्रेम की होती है।अभिनय एवं अन्य पक्ष : अभिनय के दृष्टिकोण से सरवर आहूजा ने अपनी प्रतिभा साबित की है। वहीं अदिति शर्मा के अभिनय में भी आत्मविश्वास की झलक दिखी। पहली फिल्म होने की हिचक उनके अभिनय में नहीं थी। मनोज पाहवा का अभिनय अपने किरदार के साथ पूरी तारतम्यता नहीं बिठा पाया। वहीं काफी दिनों बाद इस फिल्म के जरिए परदे पर नजर आए मुश्ताक खान का अभिनय सराहनीय रहा। प्रतीक्षा लोनकर के साथ-साथ अन्य कलाकारों का अभिनय भी ठीक-ठाक कहा जा सकता है। फिल्म के अन्य पक्षों पर नजर डालें तो तबुन सूत्रधार का संगीत भी बेहतर बन पड़ा है। वैसे बहुत ही कम दृश्यों में फिल्म को समेटने का प्रयास किया गया है, फिर भी लक्ष्मण उटेकर का फिल्मांकन बेहतर है। कुला मिलाकर अगर कहा जाए तो 'खन्ना एण्ड अय्यर' एक कमजोर कहानी पर बनी फिल्म है। जिसमें किसी बड़े नाम का न होना भी इसका एक कमजोर पक्ष है, जो दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने में ज्यादा सफल नहीं हो पाएगी।

'नमस्ते लंदन'-मनोरंजन को नमस्कार




निर्देशक : विपुल अमृतलाल शाहकलाकार : अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ, ऋषि कपूर, क्लायड स्टैडन, रितेश देशमुख, उपेन पटेल।संगीत : हिमेश रेशमिया'आँखें' और 'वक्त-द रेस अगेंस्ट टाइम' के बाद विपुल अमृतलाल शाह एक ऐसी प्रेम कहानी लेकर आए हैं, जिसमें सारे मसाले बड़ी ही नाप-तौल से डाले गए हैं। इस फिल्म में अगर रोमांस है, तो कॉमेडी और ड्रामा भी कम नहीं। यही वजह है कि 'नमस्ते लंदन' पूर्ण रूप से पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर फिल्म कही जा सकती है। फिल्म का गँवई ठेठ हीरो और लंदन की मेम की बेमेल जोड़ी से दर्शक प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएँगे। आप सोचेंगे कि यह कहानी तो मनोज कुमार की 'पूरब और पश्चिम' में भी देख चुके हैं, लेकिन फिल्म देखने के बाद आपको लगेगा कि यह उसका एक भाग है, पूरी फिल्म की नकल नहीं। भले ही मनमोहन (ऋषि कपूर) का परिवार लंदन में रहता है, लेकिन वह आज भी पूरी तरह से भारतीय है। मनमोहन अपनी बेटी जैज उर्फ जसमीत (कैटरीना कैफ) के लिए भारतीय वर की तलाश में है। वह जसमीत की शादी पंजाबी मुंडे अर्जुन (अक्षय कुमार) से करना चाहता है, लेकिन जसमीत अपने प्रेमी चार्ली ब्राउन (क्लायड स्टैडन) को अपना दूल्हा चुन चुकी है। बाप-बेटी की इस लड़ाई में अर्जुन पिसता है। पर वह जसमीत को दिलोजान से चाहने लगता है और शादी के बाद उसकी नफरत को प्यार में बदल देता है। फिल्म में कहीं रंगभेद का मुद्दा उभरकर सामने आया है और कहीं-कही यह देशभक्ति में भी डूबी नजर आती है। सुरेश नायर की पटकथा बेहतरीन है, जिसमें किसी प्रकार के सुधार की गुंजाइश नहीं। हिमेश रेशमिया का संगीत एक बार फिर रंग लाया है। फिल्म का 'चकना चकना...' और 'दिलरूबा..' गाने काफी अच्छे बने हैं। जॉनाथन ब्लॉम ने फिल्मांकन में अपना कमाल दिखाया है। जहाँ एक ओर लंदन का सौंदर्य उन्होंने बिखेरा है, वहीं पंजाब की हरियाली को भी बखूबी फिल्माया है। कलाकारों के अभिनय की बात करें तो अक्षय कुमार कॉमेडी के अंदाज से बाहर निकाल कर एक अलग तरह की भूमिका में काफी जमे हैं। कैटरीना के अभिनय में उनकी पिछली फिल्मों की तुलना में और भी ज्यादा आत्मविश्वास देखने को मिला है । ऋषि कपूर ने भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी है। अन्य कलाकारों में क्लायड स्टैडन, नीना वाडिया, रितेश देशमुख और उपेन पटेल का अभिनय भी सराहनीय है। कुल मिलाकर कहा जाए तो 'नमस्ते लंदन' पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर एक मसाला फिल्म है। उम्मीद की जा सकती है कि फिल्म को दर्शकों का अभिवादन जरूर मिलेगा।

ज्योतिष, अंक विद्या, हस्तरेखा विद्या, और टोने-टुटके

आज ज्योतिष, अंक, और हस्तरेखा विद्या समाज के अंग बन चुके हैं पर इनके पीछे कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है। यह विद्यायें कुछ लोगो के जीवन व्यापन का साधन हैं तो कुछ लोगो को, कष्ट से मुक्ति दिलाने की झूटी दिलासा दे कर, शान्ति पहुंचाते हैं। इस लेख में उन बातों की चर्चा होगी जिससे पता चलता है कि इनका विज्ञान से कोई संबन्ध नहीं है। सबसे पहले हम ज्योतिष विद्या के बारे में बात करेंगे, पर पहले तारे, ग्रह और तब राशि के बारे में।तारे और ग्रहरात में आकाश में कई पिण्ड चमकते रहते हैं, इनमें से अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं और एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा (Star) कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्ड के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है जिसका अर्थ इधर-उधर घूमने वाला है। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया।
हमारे लिये आकाश में सबसे चमकीला पिण्ड सूरज है, फिर चन्द्रमा और उसके बाद रात के तारे या ग्रह। तारे स्वयं में एक सूरज हैं। ज्यादातर, हमारे सूरज से बड़े ओर चमकीले, पर इतनी दूर हैं कि उनकी रोशनी हमारे पास आते आते बहुत क्षीण हो जाती है इसलिये दिन में नहीं दिखायी पड़ते पर रात में दिखायी पड़ते हैं। कुछ प्रसिद्ध तारे इस प्रकार हैं:
सबसे प्रसिद्ध तारा, ध्रुव तारा (Polaris या North star) है। यह इस समय पृथ्वी की धुरी पर है इसलिये अपनी जगह पर स्थिर दिखायी पड़ता है। ऐसा पहले नहीं था या आगे नहीं होगा। ऐसा क्यों है, इसके बारे में आगे चर्चा होगी।
तारों में सबसे चमकीला तारा व्याध (Sirius) है। इसे Dog star भी कहा जाता है क्योंकि यह Canis major (बृहल्लुब्धक) नाम के तारा समूह का हिस्सा है।
मित्रक (Alpha Centauri), नरतुरंग (Centaurus) तारा समूह का एक तारा है। यदि सूरज को छोड़ दें तो तारों में यह हमसे सबसे पास है। प्रकाश की किरणें १ सेकेन्ड मे ३x(१०)८ मीटर की दूरी तय करती हैं। एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो कि प्रकाश की किरणें एक साल में तय करती हैं। इसकी हमसे दूरी लगभग ४.३ प्रकाश वर्ष है। वास्तव में यह एक तारा नहीं है पर तीन तारों का समूह है जो एक दूसरे के तरफ चक्कर लगा रहें हैं, इसमें Proxima Centauri हमारे सबसे पास आता है।
ग्रह और चन्द्रमा, सूरज नहीं हैं। यह अपनी रोशनी में नहीं चमकते पर सूरज की रोशनी को परिवर्तित करके चमकते हैं।, तारे टिमटिमाते हैं पर ग्रह नहीं। तारों की रोशनी का टिमटिमाना, हवा में रोशनी के अपवर्तन (refraction) के कारण होता है। यह तारों की रोशनी पर ही होता है क्योंकि तारे हमसे बहुत दूर हैं और इनके द्वारा आती रोशनी की किरणें हम तक पहुंचते पहुंचते समान्तर हो जाती हैं पर ग्रहों कि नहीं।
प्राचीन भारत में खगोल शास्त्रपहले के ज्योतिषाचार्य वास्तव में उच्च कोटि के खगोलशास्त्री थे और अपने देश के खगोलशास्त्री दुनिया में सबसे आगे। अपने देश में तो ईसा के पूर्व ही मालुम था कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ चक्कर लगाती है। यजुर्वेद के अध्याय ३ की कण्डिका ६ इस प्रकार है,
आयं गौ: पृश्रिनरक्रमीदसदन् मातरं पुर: ।पितरं च प्रचन्त्स्व:।।
डा. कुँवर चन्द्र प्रकाश सिंह द्वारा इसका काव्यानुवाद एवं टिप्पणी की है। इसे भुवन वाणी ट्रस्ट, मौसम बाग, सीतापुर रोड, लखनऊ-२२६०२० ने प्रकाशित किया है। उन्होंने इस कण्डिका में काव्यानुवाद व टिप्पणी इस प्रकार की है,
‘प्रत्यक्ष वर्तुलाकार सतत गतिशीला।है अंतरिक्ष में करती अनुपम लीला।।अपनी कक्षा में अंतरिक्ष में संस्थित।रवि के सम्मुख हैं अविरत प्रदक्षिणा-रत।।दिन, रात और ऋतु-क्रम से सज्जित नित नव।माता यह पृथ्वी अपनी और पिता दिव।।हे अग्नि। रहो नित दीपित, इस धरती पर।शत वर्णमयी ज्वालाओं से चिर भास्वर।।फैले द्युलोक तक दिव्य प्रकाश तुम्हारा।मेघों में विद्युन्मय हो वास तुम्हारा।।लोकत्रय में विक्रम निज करो प्रकाशित।त्रयताप- मुक्त हो मानव पर निर्वृत्तिरत।।
टिप्पणी - यह मंत्र बड़ा कवित्वपूर्ण है। इसमें अग्नि के पराक्रम का चित्रात्मक वर्णन है। इसमें श्लेषालंकार है। ‘गौ पृश्नि:’ का अर्थ गतिशील बहुरंगी ज्वालाओं वाला अग्नि किया गया है। महर्षि दयानन्‍द ने ‘गौ:’ का अर्थ पृथ्वी किया है। यह पृथ्वी अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर अंतरिक्ष में घूमती है। इसी से दिन-रात, कृष्ण-शुक्ल पक्ष, अयन, वर्ष, ऋतु आदि का क्रम चलता है। अनुवाद में यही अर्थ ग्रहण किया गया है। अग्नि पृथ्वी का पुत्र भी कहा गया है। इस मंत्र में विशेष ध्यान देने की बात है- पृथ्वी का अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर घूमना। इससे सिद्ध है कि वैदिक ऋषि को पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर घूमने का ज्ञान था।’
प्राचीन भारत में अन्य प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है:
याज्ञवल्क्य (ईसा से दो शताब्दी पूर्व) हुऐ थे। उन्होने यजुर्वेद पर काम किया था। इसलिये यह कहा सकता है कि अपने देश ईसा के पूर्व ही मालुम था कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है। यूरोप में इस तरह से सोचना तो 14वीं शताब्दी में शुरु हुआ।
आर्यभट्ट (प्रथम) (४७६-५५०) ने आर्य भटीय नामक ग्रन्थ की रचना की। इसके चार खंड हैं - गीतिकापाद, गणितपाद, काल क्रियापाद, और गोलपाद। गोलपाद खगोलशास्त्र (ज्योतिष) से सम्बन्धित है और इसमें ५० श्लोक हैं। इसके नवें और दसवें श्लोक में यह समझाया गया है कि पृथ्वी सूरज के चारो तरफ घूमती है।
भास्कराचार्य ( १११४-११८५) ने सिद्धान्त शिरोमणी नामक पुस्तक चार भागों में लिखी है - पाटी गणिताध्याय या लीलावती (Arithmetic), बीजागणिताध्याय (Algebra), ग्रह गणिताध्याय (Astronomy), और गोलाध्याय। इसमें प्रथम दो भाग स्वतंत्र ग्रन्थ हैं और अन्तिम दो सिद्धांत शिरोमणी के नाम से जाने जाते हैं। सिद्धांत शिरोमणी में पृथ्वी के सूरज के चारो तरफ घूमने के सिद्धान्त को और आगे बढ़ाया गया है।
यूरोप में खगोल शास्त्रयूरोप के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री तथा उनके द्वारा किया गया कार्य इस प्रकार है:
टौलमी (९०-१६८) नाम का ग्रीक दर्शनशास्त्री दूसरी शताब्दी में हुआ था। इसने पृथ्वी को ब्रम्हाण्ड का केन्द्र माना और सारे पिण्डों को उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हुये बताया। इस सिद्धान्त के अनुसार सूरज एवं तारों की गति तो समझी जा सकती थी पर ग्रहों की नहीं।
कोपरनिकस (१४७३-१५४३) एक पोलिश खगोलशास्त्री था, उसका जन्म १५वीं शताब्दी में हुआ। यूरोप में सबसे पहले उसने कहना शुरू किया कि सूरज सौरमंडल का केन्द्र है और ग्रह उसके चारों तरफ चक्कर लगाते हैं।
केपलर (१५७१-१६३०) एक जर्मन खगोलशास्त्री था, उसका जन्म १६वीं शताब्दी में हुआ था। वह गैलिलियो के समय का ही था। उसने बताया कि ग्रह सूरज की परिक्रमा गोलाकार कक्षा में नहीं कर रहें हैं, उसके मुताबिक यह कक्षा अंड़ाकार (Elliptical) है। यह बात सही है।
गैलिलियो (१५६४-१६४२) एक इटैलियन खगोलशास्त्री था उसे टेलिस्कोप का आविष्कारक कहा जाता है पर शायद उसने बेहतर टेलिस्कोप बनाये और सबसे पहले उनका खगोलशास्त्र में प्रयोग किया।
टौलमी के सिद्धान्त के अनुसार शुक्र ग्रह पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाता है और वह पृथ्वी और सूरज के बीच रहता है इसलिये वह हमेशा बालचन्द्र (Crescent) के रूप में दिखाई देगा। कोपरनिकस के मुताबिक शुक्र सारे ग्रहों की तरह सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है इसलिये चन्द्रमा की तरह उसकी सारी कलायें (phases) होनी चाहिये। गैलिलियो ने टेलिस्कोप के द्वारा यह पता किया कि शुक्र ग्रह की भी चन्द्रमा की तरह सारी कलायें होती हैं इससे यह सिद्ध हुआ कि ग्रह – कम से कम शुक्र तो - सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। गैलिलियो ने सबसे पहले ग्रहों को सूरज का चक्कर लगाने का प्रयोगात्मक सबूत दिया। पर उसे इसका क्या फल मिला। चर्च ने यह कहना शुरू कर दिया कि यह बात ईसाई धर्म के विरूद्ध है और गैलिलियो को घर में नजरबन्द कर दिया गया।
भौतिक शास्त्र में हर चीज देखी नहीं जा सकती है और किसी बात को सत्य केवल इसलिये कहा जाता है कि उसको सिद्धान्तों के द्वारा समझाया जा सकता है। यदि पृथ्वी को सौरमंडल का केन्द्र मान लिया जाय तो किसी भी तरह से इन ग्रहों की गति को नहीं समझा जा सकता है पर यदि सूरज को सौरमंडल का केन्द्र मान लें तो इन ग्रहों और तारों दोनों की गति को ठीक प्रकार से समझा जा सकता है। इसलिए यह बात सत्य मान ली गयी कि सूरज ही हमारे सौरमंडल के केन्द्र में है जिसके चारों तरु पृथ्वी एवं ग्रह घूम रहे हैं।
Hair Musical हेर संगीत नाटक१९६० के दशक में, हेयर (Hair) नाम के संगीत नाटक का मंचन अमेरिका में शुरू किया गया। इसका सबसे पहले मंचन १७ अक्टूबर १९६७ को हुआ। इसका मंचन आज तक अलग-अलग देशों में हो रहा है पर अपने देश में कभी नहीं हुआ। यह उस समय शुरू हुआ जब अमेरिका में लोग वियतनाम जंग के खिलाफ हो रहे थे, हिप्पी सभ्यता जन्म ले रही थी। बहुत से लोगों का कहना है कि हिप्पी सभ्यता, इसी संगीत नाटक से जन्मी। इसमें लड़के और लड़कियां राशि के चिन्हों को दर्शाते थे, कुछ दृश्यों में निर्वस्त्र होते थे कुछ में वे अमेरिकी झण्डे को पहने होते थे। इसलिये शायद यह चर्चित तथा विवादास्पद हो गया।
इसका शीर्षक गीत इस प्रकार है This is the dawning age of Aquarius है। इस गाने के शब्द यहां हैं और इसे आप यहां पर सुन सकते हैं। यह गाना अपने देश में भी प्रचलित है। इस गाने का शब्दिक अर्थ है कि कुम्भ राशि का समय आने वाला है लोग इसका शब्दिक अर्थ तो जानते हैं - पर यह नहीं समझते कि यह क्या है। क्या वास्तव में कुम्भ राशि का समय आ रहा है? यह क्यों कहा जा रहा है? इसका गाने के अर्थ का भी हमारे विषय से सम्बन्ध है। इसको समझने के लिये जरूरी है कि पृथ्वी की गतियों एवं राशियों को समझें।
पृथ्वी की गतियांहमारी पृथ्वी की बहुत सारी गतियां हैं:
पृथ्वी अपनी धुरी पर २४ घंटे में एक चक्कर लगा रही है। इसलिये दिन और रात होते हैं।
पृथ्वी सूरज के चारों तरफ एक साल में एक चक्कर लगाती है। यदि हम उस तल (plane) की कल्पना करें जिसमें पृथ्वी और सूरज का केन्द्र, तथा उसकी परिक्रमा है तो पायेंगे कि पृथ्वी की धुरी, इस तल से लगभग साढ़े २३ डिग्री झुकी है पृथ्वी के धुरी झुके रहने के कारण अलग-अलग ऋतुयें आती हैं। हमारे देश में गर्मी के दिनों में सूरज उत्तरी गोलार्द्ध में रहता है और जाड़े में दक्षिणी गोलार्द्ध में चला जाता है। यानी कि साल के शुरू होने पर में सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में रहता है पर वहां से चलकर उत्तरी गोलार्द्ध और फिर वापस दक्षिणी गोलार्द्ध के उसी विन्दु पर पहुंच जाता है।
पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और पृथ्वी की धुरी लगभग २५७०० साल में एक बार घूमती है। इस समय हमारी धुरी सीधे ध्रुव तारे पर है इसलिये ध्रुवतारा हमको घूमता नहीं दिखाई पड़ता है और दूसरे तारे घूमते दिखाई देते हैं। हजारों साल पहले हमारी धुरी न तो ध्रुव तारा पर थी और न हजारों साल बाद यह ध्रुव तारा पर होगी। तब ध्रुवतारा भी रात में पूरब की तरफ से उदय होगा और पश्चिम में अस्त होता दिखायी देगा।
हमारा सौरमंडल एक निहारिका में है जिसे आकाश गंगा कहा जाता है। इसका व्यास लगभग १,००,००० प्रकाश वर्ष है। हमारी पृथ्वी आकाश गंगा के केन्द्र से लगभग ३०,००० प्रकाश वर्ष दूर है और हमारा सौरमंडल भी इस आकाश गंगा के चक्कर लगा रहा है और हमारी पृथ्वी भी उसके चक्कर लगा रही है।
हमारी आकाश गंगा और आस-पास की निहारिकायें भी एक दूसरे के पास आ रही हैं। यह बात डाप्लर सिद्धान्त से पता चलती है। हमारी पृथ्वी भी इस गति में शामिल है।
मुख्य रूप से हम पृथ्वी की पहली और दूसरी गति ही समझ पाते हैं, तीसरी से पांचवीं गति हमारे जीवन से परे है। वह केवल सिद्धान्त से समझी जा सकती है, उसे देखा नहीं जा सकता है। हमारे विषय के लिये दूसरी और तीसरी गति महत्वपूर्ण है।
तारा समूहब्रम्हाण्ड में अनगिनत तारे हैं और अनगिनत तारा समूह। कुछ चर्चित तारा समूह इस प्रकार हैं:
सप्त ऋषि ( Great/ Big bear or Ursa Major): यह उत्तरी गोलार्ध के सात तारे हैं। यह कुछ पतंग की तरह लगते हैं जो कि आकाश में डोर के साथ उड़ रही हो। यदि आगे के दो तारों को जोड़ने वाली लाईन को सीधे उत्तर दिशा में बढ़ायें तो यह ध्रुव तारे पर पहुंचती है।
ध्रुवमत्स्य/ अक्षि ( Little Bear or Ursa Minor): यह सप्त ऋषि के पास उसी शक्ल का है इसके सबसे पीछे वाला तारा ध्रुव तारा है।
कृतिका (कयबचिया) Pleiades: पास-पास कई तारों का समूह है हमारे खगोलशास्त्र में इन्हें सप्त ऋषि की पत्नियां भी कहा गया है।
मृगशीर्ष (हिरन- हिरनी) Orion: अपने यहां इसे हिरण और ग्रीक में इसे शिकारी के रूप में देखा गया है पर मुझे तो यह तितली सी लगती है।
बृहल्लुब्धक (Canis Major): इसकी कल्पना कुत्ते की तरह की गयी पर मुझे तो यह घन्टी की तरह लगता है। व्याध (Sirius) इसका सबसे चमकीला तारा है। अपने देश में इसे मृगशीर्ष पर धावा बोलने वाले के रूप में देखा गया जब कि ग्रीक पुराण में इसे Orion (शिकारी) के कुत्ते के रूप में देखा गया।
शर्मिष्ठा (Cassiopeia): यह तो मुझे कहीं से सुन्दरी नहीं लगती यह तो W के आकार की दिखायी पड़ती है और यदि इसके बड़े कोण वाले भाग को विभाजित करने वाली रेखा को उत्तर दिशा में ले जायें तो यह ध्रुव तारे पर पहुंचेगी।
महाश्व (Pegasus): इसकी कल्पना अश्व की तरह की गयी पर यह तो मुझे टेनिस के कोर्ट जैसा लगता है।
जाहिर है मैं इन सब तारा समूह के सारे तारे देख कर आकृतियों कि कल्पना नहीं कर रहा हूं, पर इन तारा समूह के कुछ खास तारों को ले कर ही कल्पना कर रहा हूं।
राशियां Signs of Zodiacयह तो थे आकाश पर कुछ मुख्य तारा समूह। इन सब का नाम हमने कभी न कभी सुना है। इनके अलावा बारह तारा समूह जिन्हें राशियां कहा जाता है उनका नाम हम अच्छी तरह से जानते हैं। इन सब को छोड़ कर, किसी तारा समूह के लिये तो खगोलशास्त्र की पुस्तक ही देखनी पड़ेगी। बारह तारा समूह, जिन्हें राशियां कहा जाता है, उनके नाम तो हम सब को मालुम हैं पर साधरण व्यक्ति के लिये इन्हें आकाश में पहचान कर पाना मुश्किल है। यह बारह राशियां हैं,
मेष (Aries)
वृष ( Taurus)
मिथुन (Gemini)
कर्क (Cancer)
सिंह (Leo)
कन्या (Virgo)
तुला (Libra)
वृश्चिक (Scorpio)
धनु (Sagittarius)
मकर (Capricorn)
कुम्भ (Aquarius)
मीन (Pisces)
इन बारह तारा समूहों को ही क्यों इतना महत्व दिया गया? इसके लिये पृथ्वी की दूसरी और तीसरी गति महत्वपूर्ण है।
यदि पृथ्वी, सूरज के केन्द्र और पृथ्वी की परिक्रमा के तल को चारो तरफ ब्रम्हाण्ड में फैलायें, तो यह ब्रम्हाण्ड में एक तरह की पेटी सी बना लेगा। इस पेटी को हम १२ बराबर भागों में बांटें तो हम देखेंगे कि इन १२ भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। हमारी पृथ्वी और ग्रह, सूरज के चारों तरफ घूमते हैं या इसको इस तरह से कहें कि सूरज और सारे ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष इन १२ तारा समूहों से गुजरते हैं। यह किसी अन्य तारा समूह के साथ नहीं होता है इसलिये यह १२ महत्वपूर्ण हो गये हैं। इस तारा समूह को हमारे पूर्वजों ने कोई न कोई आकृति दे दी और इन्हे राशियां कहा जाने लगा।
यदि आप किसी आखबार या टीवी पर राशिचक्र को देखें या सुने तो पायेंगें कि वे सब मेष से शुरू होते हैं, यह अप्रैल-मई का समय है। क्या आपने कभी सोचा हैकि यह राशि चक्र मेष से ही क्यों शुरू होते हैं? चलिये पहले हम लोग विषुव अयन (precession of equinoxes) को समझते हैं, उसी से यह भी स्पष्ट होगा।
विषुव अयन (precession of equinoxes)विषुव अयन और राशि चक्र के मेष राशि से शुरू होने का कारण पृथ्वी की तीसरी गति है। साल के शुरु होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्द्ध जाता है। साल के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुनः दक्षिणी गोलार्द्ध पहुचं जाता है। इस तरह से सूरज साल में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। इस समय को विषुव (equinox) कहते हैं। यह इसलिये कि, तब दिन और रात बराबर होते हैं। यह सिद्धानतः है पर वास्तविकता में नहीं, पर इस बात को यहीं पर छोड़ देते हैं। आजकल यह समय लगभग २० मार्च तथा २३ सितम्बर को आता है। जब यह मार्च में आता है तो हम (उत्तरी गोलार्द्ध में रहने वाले) इसे महा/बसंत विषुव (Vernal/Spring Equinox) कहते हैं तथा जब सितम्बर में आता है तो इसे जल/शरद विषुव (fall/Autumnal Equinox) कहते हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में इन ऋतुओं के आने की सूचना देता है।
विषुव का समय भी बदल रहे है। इसको विषुव अयन (Precession of Equinox) कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर २४ घन्टे में एक बार घूमती है। इस कारण दिन और रात होते हैं। पृथ्वी की धुरी भी घूम रही है और यह धुरी २५,७०० साल में एक बार घूमती है। यदि आप किसी लट्टू को नाचते हुये उस समय देखें जब वह धीमा हो रहा हो, तो आप देख सकते हैं कि वह अपनी धुरी पर भी घूम रहा है और उसकी धुरी भी घूम रही है। विषुव का समय धुरी के घूमने के कारण बदल रहा है। इसी लिये pole star भी बदल रहा है। आजकल ध्रुव तारा पृथ्वी की धुरी पर है और दूसरे तारों की तरह नहीं घूमता। इसी लिये pole star कहलाता है। समय के साथ यह बदल जायगा और तब कोई और तारा pole star बन जायगा।
पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २५,७०० साल में एक बार घूमती है। वह १/१२वें हिस्से को २१४१ या लगभग २१५० साल में तय करती है। वसंत विषुव के समय सूरज मेष राशि में ईसा से १६५० साल पहले (१६५०BC) से, ईसा के ५०० साल बाद (५०० AD) तक लगभग २१५० साल रहा। अलग अलग सभ्यताओं में, इसी समय खगोलशास्त्र या ज्योतिष का जन्म हुआ। इसी लिये राशिफल मेष से शुरु हुआ पर अब ऐसा नहीं है। इस समय वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में है। यह लगभग ईसा के ५०० साल बाद (५०० AD) से शुरु हुआ। यह अजीब बात है कि विषुव के बदल जाने पर भी हम राशिफल मेष से ही शुरु कर रहें है - तर्क के हिसाब से अब राशिफल मीन से शुरु होने चाहिये, क्योंकि अब विषुव के समय सूरज, मेष राशि में न होकर, मीन राशि में है।
ईसा के ५०० साल (५०० AD) के २१५० साल बाद तक यानि कि २७वीं शताब्दी (२६५० AD) तक, वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, मीन राशि में रहेगा। उसके बाद वसंत विषुव के समय सूरज, पृथ्वी के सापेक्ष, कुम्भ राशि में चला जायगा। यानि कि तब शुरु होगा कुम्भ का समय। अब आप हेयर संगीत नाटक के शीर्षक गीत Aquarius की पंक्ति ‘This is the dawning age of Aquarius’ का अर्थ समझ गये होंगे। अकसर लोग इस अर्थ को नहीं समझते - ज्योतिष में भी कुछ ऐसा हो रहा है।
ज्योतिष या अन्धविश्वाससूरज और चन्द्रमा हमारे लिये में महत्वपूर्ण हैं। यदि सूरज नहीं होता तो हमारा जीवन ही नहीं शुरू होता। सूरज दिन में, और चन्द्रमा रात में रोशनी दिखाता है। सूरज और चन्द्रमा, समुद्र को भी प्रभावित करते हैं। ज्वार और भाटा इसी कारण होता है। समुद्री ज्वार-भाटा के साथ यह हवा को भी उसी तरह से प्रभावित कर, उसमें भी ज्वार भाटा उत्पन करते हैं। ज्वार-भाटा में किसी और ग्रह का भी असर होता होगा, पर वह नगण्य के बराबर है। इसके अलावा यह बात अप्रसांगिक है कि हमारा जन्म जिस समय हुआ था उस समय,
सूरज किस राशि में था, या
चन्द्रमा किस राशि पर था, या
कोई अन्य ग्रह किस राशि पर था,
इसका कोई सबूत नहीं है कि पैदा होने का समय या तिथि महत्वपूर्ण है। यह केवल अज्ञानता ही है।
हमारे पूर्वजों ने इन राशियों को याद करने के लिये स्वरूप दिया। पुराने समय के ज्योतिषाचार्य बहुत अच्छे खगोलशास्त्री थे। पर समय के बदलते उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि किसी व्यक्ति के पैदा होने के समय सूरज जिस राशि पर होगा, उस आकृति के गुण उस व्यक्ति के होंगे। इसी हिसाब से उन्होंने राशि फल निकालना शुरू कर दिया। हालांकि इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि आप ज्योतिष को उसी के तर्क पर परखें, तो भी ज्योतिष गलत बैठती है।
यदि ज्योतिष का ही तर्क लगायें तो - विषुव अयन के समय सूरज की स्थिति बदल जाने के कारण - जो गुण ज्योतिषों ने मेष राशि में पैदा होने वाले लोगों को दिये थे वह अब मीन राशि में पैदा होने वाले व्यक्ति को दिये जाने चाहिये। यानी कि, हम सबका राशि फल एक राशि पहले का हो जाना चाहिये पर ज्योतिषाचार्य तो अभी भी वही गुण उसी राशि वालों को दे रहे हैं।
सच में हम बहुत सी बातो को उसे तर्क या विज्ञान से न समझकर उस पर अंध विश्वास करने लगते हैं, जिसमें ज्योतिष भी एक है। ज्योतिष या टोने टोटके में कोई अन्तर नहीं। यह एक ही बात के, अलग अलग रूप हैं। यही बात अंक विद्या और हस्तरेखा विद्या के लिये लागू होती है। अंक विद्या पर बात करने से पहले हम लोग ओमेन नाम की फिल्म की चर्चा करेंगे।
डेमियन: ओमेन – फिल्म1976 में एक फिल्म आयी थी जिसका नाम ओमेन (Omen) था। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार की है कि एक अमेरिकन राजनयिक (Diplomat) के पुत्र की म़ृत्यु हो जाती है और उसकी जगह एक दूसरा बच्चा रख दिया जाता है। इस बच्चे का नाम डेमियन (Damien) है। यह बच्चा वास्तव में एक शैतान का बच्चा है और आगे चलकर इसके एन्टीक्राइस्ट (Antichrist) बनने की बात है। यह बात बाइबिल की एक भविष्यवाणी में है। कुछ लोगों को पता चल जाता है कि यह शैतान का बच्चा है और उसे मारने का प्रयत्न किया जाता है पर पुलिस जिसे नहीं मालुम कि वह शैतान का बच्चा है, उसे बचा लेती है। यह फिल्म यहीं पर समाप्त हो जाती है।
इस फिल्म के बाद, १९७८ में दूसरी फिल्म Damien: Omern II नाम से आयी। यह डैमियन के तब की कहानी है, जब वह १३ साल का हो जाता है। १९८१ में इस सीरीज में तीसरी फिल्म Oemn III: The Final Conflict आयी। इस सिरीस की चौथी फिल्म टीवी के लिये १९९१ में Omen IV : The Awakening के नाम से बनी। इन फिल्मों में यह महत्वपूण है कि डेमियन के शैतान का बच्चा होने की बात कैसे पता चली।
डेमियन के सर की खाल (Scalp) पर बालों से छिपा ६६६ अंक लिखा था। इस नम्बर को शैतान का नम्बर कहा जाता है। इससे पता चला कि यह शैतान का बच्चा है। पर क्या आप जानते हैं कि इस नम्बर को क्यों शैतान का नम्बर क्यों कहा जाता है। चलिये कुछ अंक लिखने के इतिहास के बारे में जाने, जिससे यह पता चलेगा।
अंक लिखने का इतिहासअधिकतर सभ्यताओं में लिपि के अक्षरों को ही अंक माना गया। रोमन लिपि के अक्षर I को एक अंक माना गया क्योंकि यह शक्ल से एक उंगली जैसा है। इसी तरह II को दो अंक माना गया क्योंकि यह दो उंगलियों की तरह है। रोमन लिपि के अक्षर V को ५ का अंक माना गया। यदि आप हंथेली को देखे जिसकी सारी उंगलियां चिपकी हो और अंगूंठा हटा हो तो वह इस तरह दिखेगा। रोमन X को उन्होंने दस का अंक माना क्योंकि यह दो हंथेलियों की तरह हैं। L को पच्चास, C को सौ, D को पांच सौ और N को हजार का अंक माना गया। इन्हीं अक्षरों का प्रयोग कर उन्होंने अंक लिखना शुरू किया। इन अक्षरों को किसी भी जगह रखा जा सकता था। इनकी कोई भी निश्चित जगह नहीं थी। ग्रीक और हरब्यू (Hebrew) में भी वर्णमाला के अक्षरों को अंक माना गया उन्हीं की सहायता से नम्बरों का लिखना शुरू हुआ।
नम्बरों को अक्षरों के द्वारा लिखने के कारण न केवल नम्बर लिखे जाने में मुश्किल होती थी पर गुणा, भाग, जोड़ या घटाने में तो नानी याद आती थी। अंक प्रणाली में क्रान्ति तब आयी जब भारतवर्ष ने लिपि के अक्षरों को अंक न मानकर, नयी अंक प्रणाली निकाली और शून्य को अपनाया। इसके लिये पहले नौ अंको के लिये नौ तरह के चिन्ह अपनाये जिन्हें १,२,३ आदि कहा गया और एक चिन्ह ० भी निकाला। इसमें यह भी महत्वपूर्ण था कि वह अंक किस जगह पर है। इस कारण सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि सारे अंक इन्हीं की सहायता से लिखे जाने लगे और गुणा, भाग, जोड़ने, और घटाने में भी सुविधा होने लगी। यह अपने देश से अरब देशों में गया। फिर वहां से 16वीं शताब्दी के लगभग पाश्चात्य देशों में गया, इसलिये इसे अरेबिक अंक कहा गया। वास्तव में इसका नाम हिन्दू अंक होना चाहिये था। यह नयी अंक प्रणाली जब तक आयी तब तक वर्णमाला के अक्षरों और अंकों के बीच में सम्बन्ध जुड़ चुका था। जिसमें काफी कुछ गड़बड़ी और उलझनें (Confusion) पैदा हो गयीं।
इस कारण सबसे बड़ी गड़बड़ यह हुई कि किसी भी शब्द के अक्षरों से उसका अंक निकाला जाने लगा और उस शब्द को उस अंक से जोड़ा जाने लगा। कुछ समय बाद गड़बड़ी और बढ़ी। उस अंक वही गुण दिये जाने लगे जो कि उस शब्द के थे। यदि वह शब्द देवी या देवता का नाम था तो उस अंक को अच्छा माना जाने लगा। यदि वह शब्द किसी असुर या खराब व्यक्ति का था तो उस अंक को खराब माना जाने लगा। यहीं से शुरू हुई अंक विद्या: इसका न तो कोई सर है न तो पैर, न ही इसका तर्क से सम्बन्ध है न ही सत्यता से। यह केवल महज अन्धविश्वास है।
६६६ - शैतान का नम्बरनीरो एक रोमन बादशाह हुआ था। वह बहुत क्रूर था लेकिन कोई यह खुले तौर पर नहीं कह सकता था। उसके नाम के अक्षरों का अंक ६६६ था। इसलिये इसे शैतान का अंक कहा जाने लगा। चलिये अब हस्तरेखा विद्या पर चलते हैं पर पहले डा. जोसेफ बेल के बारे में बात करते हैं जो कि शर्लौक होल्मस की कहानियां लिखने की प्रेणना रहे।
हस्तरेखा विद्याइरविंग वैलेस, कल्पित (fiction) उपन्यास के बादशाह हैं, पर उनका मन हमेशा अकल्पित (non-fiction) लेख लिखने में रहता है। उनके अनुसार वे कल्पित उपन्यास इसलिये लिखते हैं क्योंकि उसमें पैसा मिलता है। उन्होंने बहुत सारे अकल्पित लेख लिखे हैं। इन लेखों को मिलाकर एक पुस्तक निकाली है, उसका नाम है, The Sunday Gentleman है यह पुस्तक पढ़ने योग्य है। इसमें एक लेख The Incredible Dr. Bell के नाम से है। यह लेख डा. जोसेफ बेल के बारे में है।
डा. जोसेफ बेल वे १९वीं शताब्दी के अंत तथा २०वीं शताब्दी के शुरू में, एडिनबर्ग में सर्जन थे और एक वहां के विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे। वे हमेशा अपने विद्यार्थियों को कहते थे कि लोग देखते हैं पर ध्यान नहीं देते। यदि आप किसी चीज को ध्यान से देखें तो उसके बारे में बहुत कुछ बता सकते हैं। उन्होंने बहुत सारे विद्यार्थी को पढ़ाया, उनमें से एक विद्यार्थी का नाम था आर्थर कैनन डॉयल, जो कि शर्लौक होल्मस के रचयिता हैं।
इस लेख में डा. बेल के बहुत सारे उदाहरण बताये गये हैं जब उन्होंने किसी व्यक्ति को देखकर उसके बारे में बहुत कुछ बता दिया। शर्लोक होल्मस एक जासूस थे और कहानियों में ध्यान पूर्वक देखकर बहुत कुछ सुराग ढूढ़ कर हल निकालते थे। आर्थर कैनन डॉयल ने जब शर्लोक होल्मस की कहानियां लिखना शुरू किया तो उसका चरित्र डा. बेल के चरित्र पर और डा. वाटसन का चरित्र अपने ऊपर ढ़ाला।
यदि आप किसी कागज को मोड़ें तो हमेशा पायेंगे कि उस कागज को जहां से मोड़ा जाता है, उसमें चुन्नट (Crease) पड़ जाती है। इस तरह से जब हम हंथेली को मोड़ते हैं तो जिस जगह हमारी हथेली मुड़ती है, उस जगह एक चुन्नट, रेखा के रूप में पड़ जाती है। हथेलियों की रेखायें, हाथ के मुड़ने के कारण ही पड़ती हैं।
हम किसी के हाथ को ध्यान से देखें तो कुछ न कुछ उस व्यक्ति के बारे में पता चल भी सकता है। शायद यह भी पता चल जाय कि वह व्यक्ति बीमार है या नहीं। पर उसकी हंथेली की रेखाओं को देखकर यह बता पाना कि उस व्यक्ति की शादी कब होगी, वह कितनी शादियां करेगा, कितने बच्चे होंगे, या नहीं होंगे। यह सब बता पाना नामुमकिन है। यह सब भी ढ़कोसला है।
निष्कर्ष
ज्योतिष, अंक विद्या, और हस्त रेखा विद्या में कोई भी तर्क नहीं है: यह महज अन्धविश्वास है। फिर भी, हमारे समाज में बहुत सारे काम इनके अनुसार होते हैं। बड़े से बड़े लोग इन बातों को विचार में रख कर कार्य करते हैं। शायद यह सब इसलिये क्योंकि यह कभी कभी एक मनश्चिकित्सक (psychiatrist) की तरह काम करते हैं। आप परेशान हैं कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। मुश्किल तो अपने समय से जायगी पर इसमें अक्सर ध्यान बंट जाता है और मुश्किल कम लगती है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि इनमें कोई सत्यता है या यह अन्धविश्वास नहीं है या ये टोने टुटके से कुछ अलग है।

हम बंदर ही अच्छे थे

हम बंदर ही अच्छे थेप्रिय पाठकों, उपरोक्त शीर्षक पूर्णतः मेरी निजी मान्यता है, हां, यह बात दीगर है कि अंत में मेरे विचारों से आप भी इत्तेफाक रखने लगें। आपकी तरह मैंने भी सुना है इंसान पहले बंदर था और मेरा मानना है कि बेहतर होता कि इंसान आज भी बंदर ही होता। काफी जद्दोजहद और ऊहापोह के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि हम बंदर ही अच्छे थे। हम जब तक बंदर थे, लाइफ में कोई टेंशन नहीं थी। बस, बंदर से इंसान बनते ही सारी टेंशन शुरू हो गयी। आजकल आलम यह है कि बंदर, इंसानों की वजह से टेंशन में रहने लगे हैं और इंसान, बंदरों की वजह से। वैसे देखा जाए तो अपने बंदरकाल में स्थितियां और परिस्थितियां हमारे ज्यादा अनुकूल थीं। बंदर होकर जिस रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली और पानी की हमने कभी चिंता भी नहीं की, इंसान बनते ही, वही रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली और पानी हमारी मूलभूत समस्या बन गया। सही मायनों में स्वतंत्रता का रसास्वादन भी हमने बंदर रहते ही किया है। इंसान बनने के बाद वाली स्वतंत्रता तो हमारा भ्रम मात्र है। ठीक ऐसा ही हम लोकतंत्र के बारे में भी कह सकते हैं। हम बंदर थे तो कम से कम गुलाटी मारने पर तो हमारा एकाधिकार था, अब यह स्टंट भी राजनीतिज्ञों ने पेटेंट करा लिया है। नेताओं की गुलाटियां देखकर तो आजकल के बंदर भी गुलाटी मारना भूल गए हैं। दुर्भाग्य की पराकाष्ठा देखिए कि गुलाटी पर बंदरों का ही एकाधिकार नहीं रहा। इधर, बुरा न बोलने, बुरा न सुनने और बुरा न देखने की परंपरा भी बंदरों से ही शुरू हुई और बंदरों पर ही खत्म भी हो गई। बंदरों से बुरा न बोलने, सुनने और देखने के संस्कार अगर इंसान ग्रहण करता तो कोई बात भी थी, अब बंदर बेचारा क्या बुरा बोलेगा, क्या बुरा सुनेगा और क्या बुरा देखेगा।जरा सोचिए कि इंसान होकर हमने आखिर पाया ही क्या। जबकि बंदर रहते फायदा ही फायदा था। बंदर रहते हुए एक जो सबसे बड़ा फायदा था वह यह था कि मंहगाई चाहे जितनी बढ़ जाए, अपना एक धेले भर का खर्चा नहीं होता था। जंगल में स्वछंद गुलाटी मारते थे, कभी इस पेड़ पर तो कभी उस पेड़ पर। न नौकरी की चिंता, न रोटी की फिकर। आम तोड़ा आम खा लिया, अमरूद तोड़ा अमरूद खा लिया। केले के पेड़ों पर तो पुश्तैनी कब्जा रहता था अपना। विडंबना देखिए कि जो माल कभी अपना था, अब खरीदकर खाना पड़ता है। कुछ भी खरीरने के लिए पहले कमाना भी पड़ता है। अपनी खून-पसीने की कमाई पर टैक्स देना पड़ता है, सो अलग। टैक्स अदा करने के बाद तो कुछ खास इंसान ही आम खा पाते हैं, आम इंसान तो कुछ भी खाने से पहले बीस बार सोचता है। इस मामले में बंदर आज भी लकी हैं। आम, अमरूद और केले, जो भी मन करता है, ठेले से उठाकर भाग खड़े होते हैं। इंसानों ने बंदरों से भले ही कोई नसीहत न ली हो मगर बंदरों ने इंसान से छीना-छपटी का खेल बखूबी सीख लिया है। मेरा विश्वास है कि जो आज बंदर हैं वो कल निश्चित ही हमारी तरह इंसान बनेंगे।हम जब बंदर थे तो सबकी एक ही भाषा थी- खी-खी,खी-खी, खों-खों,खों-खों। इंसान बनते ही हमने अपनी-अपनी अलग भाषा बना ली। भाषा भी ऐसी कि एक दूसरे की समझ से परे। बंदर थे तो सब एक बराबर थे न कोई छोटा, न कोई बड़ा, न कोई अमीर, न कोई गरीब, न कोई नेता, न कोई जनता। संसद की जरूरत भी हमें इंसान बनकर ही पड़ी, बंदर रहते हुए तो कभी हमें संसद की कमी महसूस नहीं हुई। हम बंदर होते तो शायद आरक्षण के बारे में सोचते तक नहीं, क्योंकि तब हमें आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं होती। सब एक बराबर जो होते।वैसे इंसान है बहुत चालाक। जिस बंदर से इंसान बना, इंसान बनते ही उसी बंदर को मदारी बनकर अपने इशारों पर नचाने लगा। कुछ होशियार किस्म के मदारी तो संसद तक जा पहुंचे और संसद में बैठकर अपने अलावा सभी को बंदर समझने लगे। यह इंसान मदारी होने का लाभ तो उठाते ही हैं, गुलाटी मार कर बंदर का हिस्सा भी गटक जाते हैं। बिजली विभाग की लापरवाही से लटकते बिजली के तार से उलझकर आज भी जब कोई बंदर अपनी जान गंवाता है तो इंसान पहले उसे चौराहे पर रखकर चंदा वसूलता है और अपनी जेब भरकर, मरे हुए बंदर को कूड़े में फेंककर चल देता है। आपने बंदर के हाथ में उस्त्रा वाली कहावत जरूर सुनी होगी। लेकिन यह कहावत वर्तमान संदर्भों में बंदरों पर प्रासंगिक नहीं रह गई है। इंसान से परेशान बंदरों के हाथ में उस्त्रा अगर आ भी गया तो वो उसे अपनी ही गर्दन पर चलाना बेहतर समझेंगे। अलबत्ता इंसान के हाथों में उस्त्रा इन दिनों कहीं ज्यादा खतरनाक है। अंततः मनुष्य योनि में व्याप्त आपाधापियों और अनिष्ट की आशंकाओं को देखते हुए कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि हम बंदर ही अच्छे थे। आपका क्या ख्याल है?

दिल, दोस्ती एटसेट्रा






आज के नौवजानों का जीवन के प्रति नजरिया, उनके सपने और भटकाव पर आधारित है फिल्म ‘दिल दोस्ती एटसेट्रा’ की कहानी। अपूर्व (ईमाद शाह) और संजय मिश्रा (श्रेयस तलपदे) दोस्त हैं जो होस्टल में साथ-साथ रहते है, लेकिन दोनों की शख्सियत बिलकुल जुदा है। अपूर्व अमीर परिवार का आधुनिक युवक है, जिसके के पास पैसा है, समय है, लेकिन जिंदगी में कोई लक्ष्य नहीं है। जबकि संजय थोड़े पुराने ख्यालातों वाला बिहारी लड़का है, जिसने जिन्दगी के संघर्ष को देखा है। संजय छात्र राजनीति से जुड़ा हुआ है और बहुत महत्वाकांक्षी है। उसके अपने लक्ष्य हैं और जिंदगी की कठिनाइयों से जूझने का माद्दा भी। फिल्म में तीन महिला चरित्र भी हैं- एक महिला मॉडल, एक स्कूल गर्ल और एक वेश्या का। वैशाली (स्मृति मिश्रा) एक वेश्या है, जो परिस्थितिवश देह व्यापार के दलदल में फँस गई है। वह कभी भी अपने ग्राहकों से किसी भी तरह का भावनात्मक संबंध नहीं रखती। स्कूल गर्ल किन्टू (ईशिता शर्मा) को अपूर्व हमेशा छेड़ता रहता है, लेकिन वह कभी भी उससे प्रभावित नहीं होती है। प्रेमा (निकिता आनन्द) मॉडल बनना चाहती है। वह काफी अमीर है और संजय के प्रति आकर्षित है। इन सभी किरदारों की अपनी कहानियाँ हैं, विचार हैं, प्यार है, दोस्ती है। यह वास्तविकता और ब्लैक ह्यूमर से भरी फिल्म है।अभिनेता नसीरूद्दीन शाह का बेटा ईमाद शाह और निकिता आनन्द इस फिल्म के जरिए मुख्य भूमिकाओं में अपने करियर की शुरूआत कर रहे हैं। इषिता शर्मा ने टेलीविजन धारावाहिकों में काम किया है। फिल्म के निर्माता हैं प्रकाश झा, जबकि निर्देशन किया है मनीष तिवारी ने।

नसीर का बेटा ईमाद भी फिल्मों में आ रहा है। प्रकाश झा के प्रोडक्शन हाउस द्वारा निर्मित फिल्म ‘दिल दोस्ती एटसेट्रा’ में ईमाद टीनएजर बने हैं जो वयस्क होने की राह पर है परंतु दिशाहीन है। इस फिल्म का निर्देशन मनीष तिवारी कर रहे हैं। यह फिल्म आज के युवाओं जिंदगी पर आधारित है। इसमें उनके सोचने का तरीका और जीने के अंदाज को दिखाया जाएगा। ईमाद के साथ श्रेयस तलपदे एवं स्मृति मिश्रा मुख्य भूमिका में नजर आएँगी। फिल्म की शूटिंग दिल्ली में की गई है।

'देहली हाइट्स'










'देहली हाइट्स' महानगरीय जीवन की वास्तविकता को पेश करती कहानी है। फिल्म का निर्माण शिवाजी प्रोडक्शन के बैनर तले प्रभु द्वारा किया जा रहा है। खास बात यह है कि रब्बी शेरगिल पहली बार संगीतकार-गीतकार के रूप में बॉलीवुड में प्रवेश कर रहे हैं। दिल्ली में 'देहली हाइट्स' नाम के अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों की अलग-अलग कहानियाँ इसमें दिखाई गई हैं। हर एक का जीवन एक कहानी है जिसमें उलझनें हैं, तनाव है तो वहीं पर खुशी के क्षण भी हैं। इसी अपार्टमेंट में एक नवदम्पत्ति अबी (जिम्मी शेरगिल) और सुहाना (नेहा धूपिया) रहते हैं। दोनों की उलझन यह है कि वे प्रतिद्वंद्वी कम्पनियों में काम करते हैं, कहीं न कहीं इससे उनके निजी संबंधों में खटास आ रही है। दूसरी तरफ यहीं बॉबी (रोहित रॉय) अपनी पत्नी साइमा (सिमोन सिंह) के साथ रह रहा है। उनकी कहानी में भी कुछ ट्विस्ट हैं। इसी अपार्टमेंट की अन्य कहानी सिख परिवार की है जिसमें टिमी कोहली (ओम पुरी) और उनकी पत्नी रुबी (कामिनी खन्ना) अपनी दो बेटियों के साथ खुशी-खुशी जीवन बिता रहे हैं। इसी बिल्डिंग में एक मजाकिया स्वभाव का क्रिकेट सटोरिया लकी (विवेक शौक) भी रहता है। एक अन्य फ्लैट में चार लड़के एक साथ रहते हैं। अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड्स को प्रभावित करने के लिए वे सब एक-दूसरे की टाँग खींचते हैं। 'देहली हाइट्स' इन सभी कहानियों का मेल है और इस मेल का परिणाम तो फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।

हँसे न हँसे हम-----देबाशीष चक्रवर्ती

अभी हाल ही में महिलाओं कि एक पत्रिका में हमने पढ़ा कि एक हजरत, टी.वी. पर अपना फेवरिट कार्यक्रम देखकर इतना हँस, इतना हँसे कि उनके प्राण पखेरू ही उड़ गए। बेचारे! वैसे उनके बेगम ने ठीक किया जो फौरन उस टी.वी केंद्र को एक शुक्रियानामा प्रेषित कर दिया कि "जनाब यूँ मेरी जिंदगी तो स्याह हो गई पर जो भी हो आपको धन्यवाद कहना अपना दिली फर्ज मानती हुँ क्योंकि आपके कार्यक्रम की बदौलत कम से कम मेरे शौहर हँसते हँसते खुदा को प्यारे हुए।"
हमने जरा अपनी बत्तीसियों को कसरत कराई नहीं कि बस सभी हमें यूँ घूरने लगते हैं जैसे पेट्रोल के दाम बढ़ाते ही वामपंथी दल मनमोहन सरकार को आँखे तरेरता है।
अब काश, कि हमारी बीवी यह पढ़ती और सबक लेती। आप ही बताइए भला हँसने से किसी का क्या नुकसान हो सकता है? पर हमारे यहाँ क्या पत्नी, क्या बच्चे। हमने जरा अपनी बत्तीसियों (फिलहाल न जाने कितनी बची हैं!) को कसरत कराई नहीं कि बस सभी हमें यूँ घूरने लगते हैं जैसे पेट्रोल के दाम बढ़ाते ही वामपंथी दल मनमोहन सरकार को आँखे तरेरता है। सभी हमारे इस गुडविल जेस्चर को उतना ही गुनाह मानने लगे हैं जैसे कर्फ्यु के दौरान चहारदिवारी फाँदकर बाहर आना। न जाने यह सिला किस जनम के कर्मों का है! अव्वल तो घर वाले हमें किसी भी सेंसिटिव समारोह में ले जाना ही नही चाहते और जो सौभाग्यवश हमें परमिट मिल भी जाए तो वयस्क बेटा और बेटी दोनों हमारी हँसी पर राशन लगा दिया करते हैं, हँसने से पहले आँखों ही आँखों में स्वीकृति का मौन आवेदन करना पड़ता है। उन्हें (और खुद हमें भी) हमेशा यह खटका लगा रहता है कि हमारी हँसी किसी प्रोहिबिटेड जोन में न फूट पड़े और यदाकदा हँसने के लिये हमें हरी झंडी जब दिखाई जाती तो अक्सर हमारा मूड ही उचट चुका होता है।
हमारी इस दयनीय स्थिति का बेहतर जायजा लेने के लिए जरूरी है कि आपको हमारी स्टोरी का फ्लैश बैक बतलाया जाए। दरअसल स्कूली दिनों में तो आज के ठीक विपरीत, हमारा "सेंस आफ ह्यूमर" काफी पुअर रेट किया जाता रहा। हमारे सहपाठी कोई भी "वन लाईनर लतीफा" (जैसे कि दो सरदारजी शतरंज खेल रहे थे) सुनाने के बाद हमारा चौखटा निहारते और इससे पहले कि स्थिति का इंडिया टी.वी.नुमा विश्लेषण करके हम हँसी का स्विच आन करते, ये जुमला भी जोड़ देते, "ये परसों हँसेगा"। इसके साथ ही छूटे ठहाकों के बीच हमारा मन तो जार जार आँसू बहाने का हो आता। कभी गलती से हम यदि किसी चुटकुले का अर्थ भाँपकर हँसने की कोशिश कर बैठते तो वही मित्र कह उठता,"क्यों परसों वाला मजाक अब समझ आया!"
फिर उस दिन हमने सीरियसली विचार किया कि आखिर किस खेत कि मूली है ये हास्य व्यंग्य जो मरदूत हमारे भेजे में आयकर नीतियों कि तरह उतरना ही नही चाहता! बस समझिये उसी दिन से हमने कमर कस ली और हास्य को अपने दैनिक रूटीन में ही शामिल कर लिया। सभी पत्रिकाओं के व्यंग्य स्तंभ जैसे फुहार, ठहाका, देखो हँस न देना आदि का ध्यानपूर्वक पठन, टी.वी पर प्रसारित हास्य कविता सम्मेलनों को पूरा देखना और उपयुक्त अवसर पाकर मंदहास या ठहाका लगाने का अभ्यास। यह भी पता चला कि च्यूइंगम के सहारे भी सदा हँसते व्यक्ति का छद्म रूप धरा जा सकता है। पर हमें क्या पता था कि हमारी इस नई नीति से कई मुसीबतें बरपा होंगी। अब जैसे उसी दिन कि बात लीजिए जिस दिन संस्कृत के पीरियड में शिक्षिका ये श्लोक पढ़ा रहीं थीं
कमले कमला शेते हरः शेते हिमालये।क्षीराब्धौ च विष्णुः शेते सत्ये मत्कुणशंकया।।
मौके की बात है कि अपन कक्षा में उसी समय हँसी का अभ्यास कर रहे थे, टीचरजी को लगा कि हम श्लोक का गुणार्थ बूझ कर हँसे। सो तपाक से हमें अर्थ बताने का निर्देश दे बैठी। अब हमें काटो तो खून नही। दो तमाचे चखने के बाद हमारी ज्ञान इंद्रियों ने सूचित किया कि यह कोई साधारण श्लोक नहीं बल्कि एक हास्य श्लोक था, खटमल के डर से क्षीरसागर में रहते विष्णु और हिमालय पर सोते शिवजी के बारे में। एक बार फिर हम चुटकुले के हाथों शहीद हुए।

अब तो हमें घर में हँसने से उतना ही डर लगता है जितना सरकार को कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने से।
इधर घर पर हम मौका देखकर हम जरा हँसी क्या बिखेरते, दादीमाँ का पोपले मुँह से उलाहना डिस्पैच होता, "अरे मुए, फक्कड़ों कि नाई खीसें निपोरता रहता है! मसखरा है क्या? ये क्या बंदर की तरह हमेशा खीं खीं करता है।" खैर वक्त कटता गया और शादी के बाद हमारी खिंचाई का सारा दारोमदार पत्नी व बच्चों पर आ गया। कभी हम उनकी सहेली द्वारा शहर के ही सस्ते स्टोर से खरीदी साड़ी को हसबेंड से बनारस से मँगाने कि कथा को व्यंग्य समझकर हँस देते दो बाद में पत्नी हमारी आरती उतार कहती, "अरे कैसे निरेबुद्धू के पल्ले बंध गयी मैं, इनकी नामुराद हँसी हमेशा गलत वक्त पर ही फूटती है। अब बेचारी एक झूठ बोलती है तो चार धैर्यपूर्वक सुनती भी तो है"। अपने व्यंग्यग्रहण शक्ति प्रदर्शन से किसी का मखौल उड़ जाएगा यह तो हमनें कल्पना भी नहीं की थी।
अब तो हमें घर में हँसने से उतना ही डर लगता है जितना सरकार को कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने से। कई बार अपनी पैरवी की। छोटी बेटी को पास बैठाकर उसे एक पत्रिका के लेखाँश पढ़कर सुनाए, "देखो बेटा क्या लिखा है, हँसना स्वास्थ्य के लिये अच्छी वर्जिश है। इससे ऊब, उदासी, तनाव, अवसाद चुटकी बजाते दूर हो जाते हैं। हँसते मस्तिष्क को उत्प्रेरणा मिलती है।" इससे पहले कि हम आगे पढ़ें हमारी नन्हीं बेटी सिर हिलाते हिलाते जम्हाई लेकर बोर होने का संकेत दे देती। पर फिर भी हमें सुकून मिलता कि चलो कम से कम ये तो अपने पाले में है। पर जब इतवार को टीवी पर "एलिस की अनोखी दुनिया" देखते वही नन्ही खिलखिलाकर कहती, " पापा ये डचेस की बिल्ली तो बिल्कुल आप जैसी है, हमेशा बिना बात ही हँसती रहती है", तो हमारा सारा भ्रम टूट जाता। गर मैं बेटे कि डेनिम पैंट के घुटने पर एक छेद देखकर हँसता और कहता "अरे, यह पहन कर बाहर जाओगे" तो बेटा और उसके दोस्त खीज उठते,"क्या पापा आप भी, क्या फैशन भी अब हँसने की चीज हो गई है!"
बाप रे! ट्रेजेडी किंग यूसुफ साहब जैसे सारी दुखद बातें शायद हमारे ही साथ होती हैं, पर हाँ गनीमत है कि किसी पहलवान के केले के छिलके से फिसलने और पार्टियों में मेहमान के जबड़ों से दूर छिटके मुर्गे कि टाँग के वाकये पर हँसकर हमने धौल या गालियाँ नही खाई वरना हमारी दंतकथा पूर्ण हो जाती। वैसे, पड़ोसी अब हमारी हँसी को बिल्ली के रास्ता काट जाने से भी ज्यादा अपशगुन मानते हैं।
आप ही फैसला किजिए जब हँसी नही आती थी तो उपहास का पात्र बनते थे, अब ताबड़तोड़ रावणनुमा ठहाके लगा लेते हैं तो भी भृकुटियाँ उठती हैं। गोया फकत एक पेशी की हरकत से जो तनाव हमें झेलना पड़ा उससे तो खुश रहने के तमाम मेडिकल फायदों का ही बेड़ा गर्क हो गया। आजकल तो तन्हाई में बस यही गुनगुनाते हैं हँसे...न हँसे हम!

'रेड-द डार्क साइड'
















'रेड-द डार्क साइड' आफताब शिवदासनी, सेलिना जेटली और अमृता अरोड़ा अभिनीत फिल्म 'रेड-द डार्क साइड' की कहानी कुछ इस तरह है-नील ओबरॉय- एक अमीर नौजवान। वह पैसे से कुछ भी खरीद सकता है। उसके पास सबकुछ है, तो क्या वह दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति है? कुछ समय बाद पता चलता है कि नील दिल की एक गम्भीर बीमारी से जूझ रहा है।





















अब उसे कोई चमत्कार ही बचा सकता है। लेकिन उसकी जिंदगी में अनाहिता का आना किसी चमत्कार से कम नहीं था। अनाहिता- बहुत खूबसूरत समझदार लड़की है, लेकिन फिर भी अकेली है। उसकी वजह थी एक दुर्घटना, जिसमें उसका सबकुछ खो जाता है। पर भाग्य ने ऐसा खेल खेला कि उसकी मुलाकात नील से हो जाती है, जहाँ उसे उम्मीद की एक हल्की-सी किरण दिखाई पड़ती है।रिया- अनाहिता की सबसे अच्छी दोस्त रिया। साँवली सूरत और दिलफेंक मिजाज की रिया का जीवन भी बड़ा रहस्यमयी है, जिससे लोग उसे कतराते हैं। हमेशा जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती है और लोगों को उसके साथ अपना तालमेल बिठाना पड़ता है। इस फिल्म की कहानी भी इन तीनों की जिंदगी की रफ्तार को दर्शाती है, जिसमें भय, दुःख, लालच, झगड़े भी शामिल हैं। 'रेड-द डार्क साइड' फिल्म नील, अनाहिता और रिया की कहानी है। मौत के करीब होते हुए भी नील जब अनाहिता के करीब जाता है तो उसे अनाहिता के जीवन की पिछली बातें पता चलती हैं साथ ही उसे मालूम चलता है रिया का रहस्य। इस अनसुलझी कहानी को सुलझाने का मौका दर्शकों को फिल्म की रिलीज के बाद ही मिलेगा।











'क्या लव स्टोरी है'












लवली सिंह द्वारा निदेर्शित फिल्म 'क्या लव स्टोरी है' तीन नौजवाँ दिलों की दास्तान हैं। अर्जुन (तुषार कपूर) को पहली ही नजर में काजल (आयशा टाकिया) से प्यार हो जाता है। अर्जन बहुत दिनों तक काजल का पीछा करता रहता है। और तब कहीं जाकर वह सफल हो पाता है। काजल के लिए अर्जुन एक शांत और अच्छे स्वभाव का लड़का है। वह अपने दिल का हाल कागज पर लिखता है, लेकिन अपने दिल की बात काजल पर जाहिर करने में उसे झिझक महसूस होती है। माँ के मरने के बाद काजल काफी अकेली हो गई थी। उसके पिता का भी बिजनेस के सिलसिले में हमेशा बाहर आना-जाना लगा रहता था। एक बार काजल के हाथ अर्जुन की लिखी चिट्ठी लग जाती है लेकिन उस पर अुर्जन का नाम नहीं लिखा रहता। काजल को वह चिट्ठी बहुत अच्छी लगती है। तब अर्जुन उसके दिल का हाल जानने के लिए पूछता है कि अगर कोई लड़का उसे प्यार करे तो उसका जवाब क्या होगा?काजल का जवाब सुनकर अर्जुन को यह महसूस होता है कि उसने काजल से पूछकर गलती कर दी है। और वह काजल को बिना बताए उससे दूर चला जाता है। फिल्म के मध्य भाग में काजल की मुलाकात एक सफल और प्रसिद्ध बिजनेसमैन से होती है। उससे मिलने के बाद काजल को यह महसूस होता है कि वह उसके लिए एक बेहतर जीवनसाथी साबित हो सकता है।




काजल उससे बहुत प्रभावित हो जाती और दिन-रात उसी के ख्यालों में डूबी रहती है। दूसरी तरफ ऐसी स्थिति बनती है कि वह भी दक्षिण अफ्रीका पहुँच जाता है, जहाँ वह देखता है कि काजल की मंगनी उस बिजनेसमैन के साथ हो रही है। तीनों की अपनी-अपनी मंजिल है और इस दोराहे पर खड़े होकर कौन अपनी मंजिल पर पहुँच पाता है, यह अभी बताना मुश्किल है। यह हास्य से भरपूर प्रेम कहानी है। फिल्म में करीना कपूर मेहमान कलाकर के रूप में नजर आएँगी। साथ ही फिल्म में दक्षिण अफ्रीका के कई खूबसूरत दृश्यों को फिल्माया गया है।